________________ एगंतापामन्ने, तेसिं संविग्गगीयपुरिसाणं / तित्थे तित्थयरम्मि य, उप्पज्जइ संसओ नियमा // 124 // जं भणसि सुत्तवुत्तं, पमाणमेयं पि वयणमेत्तं ते / जं जीयव्ववहारं, मुच्चसि तं सुत्तपयडं पि // 125 // गणहर-पुव्वधराईरइयं सुत्तं ति सच्चमेवेयं / तं मग्गमणुसरंतं, पमाणमो नवरमन्नं पि // 126 // तित्थं पभावयंता, संपइ कइणो वि सुंदरा चेव / जम्हा जिणेदसमए, पभावगा ते पढिजंति // 127 // पावयणी धम्मकही, वाई नेमित्तिओ तव्वस्सी य। विज्जा-सिद्धो य कवी, अद्वैव पभावगा भणिआ // 128 // पवयणपभावणकर, सजुत्तिरइयं पि सोहणं नेयं / रोसा णेतो रयणं, खारो पि पसंसिओ लोए // 129 // जो जो अ सुअग्गाहो, पडिवक्खो तस्स तस्स भणियव्वो / जत्तो वायइ पवणो, परियत्थी (?) दिज्जए तत्तो // 130 // संघ अवमन्नतो, जाणगमाणी जणो असग्गाही। कहमवि भिन्नं मन्नइ, जमालिपमुहाणमप्पाणं // 131 // संसिज्जइ नियकिरिया, दूसिज्जइ सयलसंघववहारो / कत्तो एत्तो वि परा, विमाणणा हंदि ! संघस्स ! // 132 // जो जिणसंघ हीलइ, संघावयवस्स दुक्कयं दटुं / सव्वजणहीलणिज्जो, भवे भवे होइ सो जीवो // 133 // जइ कम्मवसा केई, असुहं सेवंति किमिह संघस्स ? / विट्टालिज्जइ गंगा, कयाइ किं वासवारेहिं ? // 134 // जो पुण संतासंते, दोसे गोवेइ समणसंघस्स। विमलजसकित्तिकलिओ, सो पावइ निव्वुइं तुरियं // 135 // .53