________________ भन्नइ एत्थ समाही, कह वि जइ होई कोइ कायवहो / तह वि हु गुरुवयणाओ, आयरणाओ य नो दुट्ठो / // 41 // विहिवयणं च पमाणं, सुत्तुत्तं जेण ठावणा गुरुणा / कज्जा जिणबिंबाणं, तं सविसयं हवइ करणे // 42 // अन्नह निव्विसयत्तं, पावेइ तयं तु तेण सो जुत्तो / . . तइया तह गुरुठवणे, बिंबस्स उं गउरवाइगुणा // .43 // अन्नं च सुत्तविहिणा, संभवजयणाए बिंबठवणाए / नो कायवहाईया, दोसा जिणभवणकहणे व्व // 44 // जिणभवणबिंबपूया-इयं च न विणा गुरुं गिही मुणई। . न य तत्थ न कायवहो, गुरुणो दोसो य न य वुत्तो // 45 // अलमेत्थ पसंगेणं, ठविए एवं जिणस्स बिंबम्मि / अट्ठोत्तरकलससएण, मज्जिए पुण जहाविहवं // 46 // पूयाइएसु जत्तो, परमो पइदियहमेव कायव्वो / एवं जयंताण लहुं, जायइ चारित्तपरिणामो // 47 // श्रीशान्त्याचार्यविरचितम् / // चेइयवंदणमहाभासं // .. पणमह पणमंतसुरा-ऽसुरिंदमणिमउडघट्ठपयपीढं / सिप्प-कला-ऽऽगम-सिवमग्गदेसयं जिणवरं उसहं // 1 // संगमयामरगयऽमाणमाणमायंगमद्दणमयंदं / पणमह वीरं तित्थस्स नायगं वट्टमाणस्स संसारगहिरसायरपडंतजंतूण तारणप्पवणे / .. . तीया ऽणागय-संते, वंदे सव्वे वि तित्थयरे . // 3 // પર