________________ // 5 // // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // संतिसुयदेवयाणं, करेइ उस्सग्गथुइपयाणं च / सहिरनदाहिणकरो, सयलीकरणं तओ कुज्जा ते सुद्धोभयपक्खा; दक्खा खेयण्णुया विहियरक्खा / ण्हवणगरा उ खिवंती, दिसासु सव्वासु सुद्धबलि तयणंतरं तु मुद्दीय-कलसचउक्केण ते ण्हवंति जिणं / पंचरयणोदएणं, कसायसलिलेण ण्हवयंति चंदणजलेण कुंकुम-जलकुंभेहिं च तित्थसलिलेण / सुद्धकलसेहिं पच्छा, गुरुणा अभिमंतिएहिं तहा ण्हाणाणं सव्वाण वि, जलधारापुप्फधूयगंधाई / दायव्वमंतराले, जावंतिम कलसपत्थावो एवं ण्हविए बिंबे, नाणकलानासमाचरेज्ज गुरू / तो सरससुयंधेणं, लिंपेज्जा चंदणदवेण कुसुमाइं सुयंधाई, आरोवेत्ता ठवेज्ज बिंबपुरो / नंदावत्तयपढें, पूएज्ज य चारुदव्वेहिं चंदणछडुब्भडेणं, वत्थेणं छायए य तं पढें / अह पडिसरमारोवे, जिणबिंबे रिद्धिविद्धिजुयं तो सरससुयंधाइं, फलाई पुरओ ठवेज बिंबस्स / जंबीरबीजपूरा-इयाइं तो देज्ज गंधाई मुद्दामंतन्नासं, बिंबे हत्थम्मि कंकणनिवेसं। मंतेण धारणविहिं, करेन्ज बिंबस्स तो पुरओ बहुविहपक्कन्नाणं, ठवणा वरवेहगंधपुडियाणं / वरवंजणाण य तहा, जाइफलाणं च सविसेसं सांगिक्खूवरसोलग-खंडाईणं वरोसहीणं च / संपुन्नबली य तहा, ठवणं पुरओ जिणिदस्स // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 //