________________ एत्तो च्चिय णिदिवो धम्मम्मि चउ-विहम्मि वि कमोऽयं / इह दाण-सील-तव-भावणामए, अण्णहाऽजोगा . // 198 // संतं पि बज्झमऽणिच्चं थाणे दाणं पि जो न वियरेइ / ... इय खुद्दओ कहं सो सीलं अइ-दुद्धरं धरइ ? // 199 // अ-सीलो ण य जायइ सुद्धस्स तवस्स हंदि विसओ वि। जह-सत्तीएऽ[अ]-तवस्सी भावेइ कहं भावणा-जालं? // 200 // एत्थ कमो-दाण-धम्मो दव्व-त्थय-रूवमो गहेयव्वो / सेसा उ सु-परिशुद्धा णेया भाव-त्थय-स-रूवा // 201 // . इह आगम-जुत्तीहिं य तं तं सुत्तमऽहिगिच्च धीरेहिं / . दव्व-त्थया-ऽऽइ-रूवं विवेइयव्वं सु-बुद्धीए // 202 // एसेह थय-पइन्ना समासओ वन्निया मए तुज्झं / . . वित्थरओ भाव-ऽत्थो इमीए सुत्ताउ णायव्वो // 203 // आचार्यश्रीवर्धमानसूरिरचिते स्वोपज्ञवृत्तिकधर्मरत्नकरण्डके ॥जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधिः // घोसावेज्ज अमारं, स्ना संघस्स तह य वाहरणं / विनाणियसम्माणं, कुज्जा खेत्तस्स य विसुद्धि तह य दिसिपालठवणं, तक्किरियंगाण संनिहाणं च / दुविहसुई पोसहिओ, चेईए ठवेज्ज जिणबिंबं // 2 // नवरं सुमुहुत्तम्मि, पुव्वुत्तरदिसिमुहं सउणपुव्वं / . वज्जतेसु चउव्विह-मंगलतूरेसु पउरेसु / तो सव्वसंघसहिओ, ठवणायरियं ठवेत्तु पडिमपुरो। . देवे वंदइ सूरी, परिहियनिरुवहयसुइवत्थो 48 // 4 //