________________ सिय "पूआओवगारो ण होइ को वि पूअणिज्जाणं / कय-किच्चत्तणओ तह जायइ आसायणा चेवं // 162 // तअ-ऽहिग-णिवत्तिए गुण-उतरं णऽत्थि एत्थ णियमेणं / इय एय-गया हिंसा स-दोसमो होइ णायव्वा" // 163 // "उवगारा-5-भावे वि हु चिंता-मणि-जलण-चंदणा-ऽऽईणं / विहि-सेवगस्स जायइ तेहिंतो सो पसिद्धमिणं" // 164 // इय कय-किच्चेहितो तब्भावे णऽत्थि कोइ वि विरोहो / एत्तो च्चिय ते पुज्जा का खलु आसायणा तीए ? // 165 // अहिगरण-णिवित्ती वि इहं, भावेण ऽहिगरणा णिवित्तीओ। तइंसण-सुह-जोगा गुण-उतरं तीए परिसुद्धं // 166 // ता, एय-गया चेव(व)हिंसा 'गुण-कारिणी" त्ति विण्णेया / तह, भणिय-णायओ च्चिय एसा अप्पेह जयणाए // 167 // तह, संभवंत-रूवं सव्वं सव्व-ण्णु-वयणओ एअं। तं णिच्छिअं [क] हिआ-ऽऽगम-पउत्त-गुरु-संपयाएहि।। 168 // "वेय-वयणं तु णेवं, अ-पोरुसेयं तु तं मयं जेणं / इअमऽच्च-उंत-विरुद्धं "वयणं च" "अ-पोरसेयं च"॥ 169 // जं "वुच्चई" त्ति "वयणं" पुरिसा-5-भावे उ णेवमेअंति / ता तस्सेवाऽ-भावो णियमेण अ-पोरिसेयव्वे // 170 // तव्वावार-विरहिअंण य कत्थइ सुच्चई इहं वयणं / सवणे वि य, णा-ऽऽसंका अ-दिस्स-कत्तुब्भवाऽवेइ"॥ 171 // * "अ-दिस्स-कत्तिगं णो अण्णं सुव्वइ, कहं णु आसंका ?" / सुव्वइ पिसाय-वयणं, कयाइ, एअं तु ण सदेव // 172 // "वण्णा-ऽऽद-ऽ-पोरुसेयं" "लोइअ-वयणाण ऽवीह सव्वेसि / वेयम्मि को विसेसो ? जेण तहिं एसऽ-सग्गहो" // 173 // .. 45