________________ एवंचिय मज्झत्थो आणाइ उ कत्थइ पयट्टतो / / सेह-गिलाणा-ऽऽइ-ऽट्ठा, अ-पवत्तो चेव णायव्वो // 66 // आणा-पर-तंतो सो, सा पुण सव्वण्णु-वयणओ चेव / / एगांत-हिया विज्जग-णाएणं सव्व-जीवाणं // 67 // भावं विणा वि एवं होइ पवित्ती ण बाहए एसा / सव्वत्थ अणाऽभिसंगा विरइभावं सुसाहुस्स // 68 // उस्सुत्ता पुण बाहइ स-मइ-विगप्प-सुद्धा वि णियमेणं / गीय-णिसिद्ध-पवज्जण-रूवा णवरं णिरणुबंधा // 69 // इअरहा उ, अभिणिवेसा इयरा, ण य मूल-छिज्ज-विरहेण / होएसा एत्तो च्चिय पुव्वा-ऽऽयरिया इमं चाऽऽहुः // 70 // "गीअत्थो य विहारो, बीओ गीअत्थ-मी(नि)सिओ भणिओ / इत्तो तइय-विहारो णा-ऽणुण्णाओ जिण-वरेहिं // 71 // गीअस्स णो उस्सुत्ता, तज्जुत्तस्सेयरस्स वि तहेव / णियमेण चरणवं, जं, न जाउ आणं विलंघेइ // 72 // ण य गीअत्थो-ऽण्णं ण णिवारेइ जोग्गयं मुणेऊणं / एवं दोण्हं वि चरणं परिसुद्ध, अण्णहा णेव // 73 // ता, एवं विरइ-भावो संपुण्णो एत्थ होइ णायव्वो। . णियमेणं अट्ठारससील-उंग-सहस्स-रूवो उ // 74 // उणत्तं ण कयाइ वि इमाणं, संखं इमं तु अहिगिच्च / / जं, एय-धरा सुत्ते णिद्दिट्ठा वंदणिज्जा उ // 75 // * ता, संसार-विरत्तो अण-उंत-मरणा-ऽऽइ-रूवमेअं तु / णाऊ एअ-विउत्तं मोक्खं च गुरूवएसेणं // 76 // परम-गुरुणो आणं[णोअ अण-ऽहे]आणाए गुणे, तहेव दोसे य / मोक्ख-ऽत्थी पडिवज्जिअ भावेण इमं विसुद्धेणं // 77 / / 30