________________ अरिहं देवो गुरुणो सुसाहुणो जिणमयं मह पमाणं / इय सम्मत्तविसुद्धो धम्मो मे होउ सइ सरणं // 151 // इच्चाइ भणिय समरियनवकारो सुअइ अप्पनिदाए / समए जग्गिय एवं कुणइ मुणी पुण वि दिणचरियं // 152 // इय सुद्धसमायारो बहुधम्ममणोरहुल्हसियचित्तो / तित्रभवजलहिमप्पं मनंतो लहइ सिद्धिसुहं // 153 // सिरिकालियसूरीणं वंसुब्भवभावदेवसूरीहिं / * संकलिया दिणचरिया एसा थोवमइजइजोग्गा // 154 // - श्री पूर्वधर-पूर्वाचार्यविरचिता ॥स्तव-परिज्ञा // "एअमिहमुत्तम-सुअं 'आइ'-सद्दाओ थय-परिण्णा-ऽऽइ" / "वण्णिज्जइ जीए थओ दुविहो वि गुणा-ऽऽइ-भावेण" // 1 // दव्वे भावे अ थओ "दव्वे-भाव-थय-रागओ विहिणा / जिण-भवणा-ऽऽइ-विहाणं" "भाव-थओ-संजमो सुद्धो"॥ 2 // "जिणभवण-कारणविही, -सुद्धा भूमि, दलं च कट्ठा-ऽऽई / भिअगाऽण-ऽइसंधाणं, 'सा-ऽऽसय-वुड्डी, समासेण" // 3 // "दव्वे भावे अ तहा सुद्धा भूमी" "पएस-ऽकीला य / दव्वे "ऽपत्तिग-रहिया अन्नेसि होइ भावे उ" // 4 // . "धम्म-ऽत्थमुज्जएणं सव्वस्सा-ऽपत्तियं न कायव्वं"। इय संजमो वि सेओ इत्थ य भयवं उदाऽऽहरणं "सो तावसा-ऽऽसमाओ तेसिं अप्पत्तियं मुणेऊणं / / परमं अ-बोहि-बीअं, तओ गओ हंतऽकाले वि"