________________ // 368 // // 369 // // 370 // // 371 // // 372 // // 373 // कालम्मि पडिक्कंते, जइ सुयइ तओ गुरूहि णुनाओ। पडिलेहिय भुवसंथा-रयं च उच्चरिय सामाइयं जायम्मि अड्डरत्ते, गिव्हइ तो अड्डरत्तियं कालं / अइनिद्दावसएणं, न साहुणा कह वि भवियव्वं सव्वे पढमे जामे, वसहा बीए तए तहा गुरू तईए। जग्गंति चरमपहरे, सव्वे एसा हु गणमेरा किं तव चरणं चिनं, किमहीयं किं कयं कवणकज्जं / किं वा मे कयसेसं, चिंतइ रत्तिं दिवं एवं इय विहरंतो साहू, आरूढो खवगसेढिनिस्सेणिं / धूअकम्मा तम्मि भवे, लहेइ लोअग्गिमं ठाणं जम्मजरमरणआयव - भयवाहिविवज्जिओ ठिओ तत्थ / सोऽणंतनाणदंसण - विरओ सुहमणुवहइ निच्चं छट्टेणं मुणी जं खिवइ, कम्मणा तित्तिएण सेसेण / होइ लवसत्तमो वा, जहनओ जाइ सोहम्मे . इय दुल्लहसामग्गी, पुव्वा विरई मए दुहाऽभिहिया / जं आयण्णिय भविया, नणु जिणधम्मे पयट्टति अप्पत्थियं सुहं एइ, जाइ अनिसेहियं दुहं तेंसि / जेसि जिणोवइडेसु होइ अत्थेसु अणुराओ . जे संसारपरित्ता, गुरुसुभत्ता गुणेसु आउत्ता। तेसि चिय जिणवुत्तं, तत्तं परिणमइ चित्तम्मि जे उण चरणे अलसा, कम्मवसा पवयणे अपत्तरसा / तेसिं उसरबुट्ठि - व्व निप्फला होइ जिणवाणी निच्चमिमे उवएसा, सुपुरिसपरिसाइचिअ धरणिज्जा / मा निवडंतु कुपत्ते, कया वि दुद्धं व सोवीरे 259 // 374 // // 375 // // 376 // // 377 // // 378 // // 379 //