________________ // 344 // // 345 // // 346 // // 347 // // 348 // // 349 // पाएण लूहवित्ती, नवकप्पविहारिणो वि पाएण / पाएण अणेगचारी, निप्पडिकम्मा वि पाएण निच्चमचंचलनयणा, पसंतवयणा पसिद्धगुणरयणा / जियमयणा मिउवयणा, सव्वत्थ वि सन्निहियजयणा विरया सुइरयणजुआ, महियमया तारवत्त सुबहुदया। ससिमेहनयरहा इव रेहंते सायर सहावा नाणे दंसणचरणे, सामण्णे णेगहा न हायति / दुविहं वहंति सिक्खं, बझंति न गारवेहि तेहिं चउहाभिग्गहधारी, सज्झायं पंचहा विभावंति / छज्जीवनिकायहिया, मुणंति सत्तविहमागाढं पेहंति अट्ठसुहुमे, अनवनियाणा नायदसधम्मा। तिगुणिक्कारसआया-सणुज्झिया बारसतवस्सी तेरसकिरियाट्ठाणे, चयति चउदस मुणंति जियभेए / पनरस थुणंति सिद्धे, दिक्खं जपंति सोलसहा . एवं गुणवुड्डीए, एगुत्तरियाइ ताव नेयव्वा। . अट्ठारसहससिलांग - संगया जा मुणी हुंति साहू निसाइचरिमे, जामे वेरत्तियं गहियकालं / सज्झायं कुणइ तहा, असंजया जह न जग्गंति तो पडिकमित्तु कालस्स, तस्स पाभाइयं च.गहिंऊण / पहरस्स चउत्थंसे, छव्विहमावस्सयं कुणइ. तो सव्वदोसमुक्कं, अचलमणण्णोवगओगमुक्कुडुओ। अंगोवहिपडिलेहं, करेइ तो सोहए वसहिं अह वंदिऊण सूरी, पुच्छइ कायव्व मज्झ कि भंते / गुरु आएसेण कुणइ, वेयावच्चं च सज्झायं . 257 // 350 // // 351 // // 352 // // 353 // // 354 // // 355 //