________________ // 248 // // 249 // // 250 // // 251 // // 252 // // 253 // जइ असुहकम्मवसओ, जाणतो कह वि लंघए मेरं / न य सव्वहा विणस्सइ, तह वि आसाढभूइ व्व आभिणिबोहियमाई, तं.पंचविहं सुएण इह पगयं / . सेसाई नाणाई, न हि गुरुसिक्खं अविक्खंति अंगपविटुं तह अंग-बाहिरं तं सुयं भवे दुविहं / अंगपविटुं बारस-भेयं इयरं अणेगविहं अत्थओ सुअं समग्गं, एगं पि पयं अमोहमाहंसु / एगपएणं पत्तो, चिलाइपुत्तो सहस्सारं इच्छइ जइ सुपहाणं, नाणं ता आयरे सुगुरु विणयं / विणएण विणा विज्जा, न होइ जइ होइ न फलइ जे अविणीया थद्धा, गारविया गुरुजणम्मि मच्छरिणो / न हु ते आलावस्स वि, जुग्गा किर सुत्तसारस्स बहुमाणजुए बद्धायरम्मि विणओ णए समप्पंति।। गुरुणो ज्झत्ति सुसीसे, पिउ व्व.पुत्ते सुयनिहाणं / अणुरूवो आयरिओ, अणुरूवो चेव होइ जइ सीसो।। ता उवएसो सहलो, जह मेहमुणिम्मि वीरस्स किरियाजुत्तेणं चिय, नाणेण जिणा भणंति फलसिद्धि / सत्थभडअंधपंगुल-नरि स्थिसंजोग दिटुंता / मा जाणसु जीयहिए, जियअहिए किं भयं सुए अहिए / अहिए पडसि भवोहे, जइ किरियाए पमाएसि चउदसपुव्वी वि सया, पाविज्जंते पमायपरिवडिया। साहारणेसुऽणंता, असंखया सेसकाएसु नीसारेसि भवाओ, भविए कह अप्पणा न नीसरसि / जं तरइ अप्पणा वि हु, तारंतो तारओ लोयं 249 // 254 // // 255 // // 256 // // 257 // // 258 // // 259 //