________________ नाणस्स लद्धीण य होइ लंभो, जुगत्तमिदाइयवंदणस्स। यत्ते चरित्ते न भयं न चिंता, न पुत्तमित्ताइवियोगदुक्खं // 236 // जइ चिंतेइ सुहं ता, देवाणहियं दुहं तु जं किं पि। .. तं पि सुहकारणं ता, उवयारेणं सुहं चेव // 237 // कम्मगिरिगरिमअसणी, भवरोगाणोसहि व्व निम्महणी। सिवनयरगमणविज्जा, एस चिय होइ पव्वज्जा // 238 // करवत्तदारणाई-दारुणदुक्खं सहति जस्स कए। अव्वत्तं पि चरित्तं, जं रज्जं देइ जीवणं // 239 // तेसिं सयणाण कए, चइए को वच्छलं चरणलच्छिं। .. जाण सिणेहो असुहो, अबहुट्टिई विहडणासीलो // 240 // कस्स वि कोइ न इट्ठो, इक्कं चिय इ8 अप्पणो कज्जं / . कज्जावडिया संसारियाण सव्वे वि संबंधा // 241 // हुँति हु एगघरस्सव, वावारलवेण वावडा के वि / तं न वहिउं न मुत्तुं, सित्थं व पिपीलिया सत्ता // 242 // अवरे वरवसहा इव, पढमं धरिउं समग्गधरणिधुरं / पच्छा खणेण चइऊण, गहियदिक्खं गया मुक्खं // 243 // मोहखउवसमेणं, चरणे पत्ते समुज्जमसु नाणे / जं अंकुसं व उप्पह-गयस्स मुणिणो मणगयस्स // 244 // हियमहियं वा पढम, जाणंति तओ समायरंति हियं / तम्हा नाणाइत्तं, मुणीण सयलं अणुट्ठाणं // 245 // मणिपत्थराण पुण्णिम-कुहूण तह चक्खुमंतअंधाणं / . जो होइ इह विसेसो, सु च्चिय नाणीण इयराणं // 246 // पुण्णो ससि व्व फलिओ, तरु व्व जलपूरिओं तलाव व्व। सुअसंपुण्णो साहू, भण कस्स न वल्लहो होइ / // 247 // 248