________________ // 225 // // 226 // // 227 // // 228 // // 229 // अधिकार-४ इइ देसेणं विरई, भणिया इत्तो वि होइ कमणिज्जा / भव्वाणं सव्वविरई, सरलो मग्गो सिवपुरस्स वेग्गं चारित्ते, पडिवत्ति नाणविणयकिरियाउ। संयमभेया मुणिगुण-दिणकिच्चफलाइं इह वुच्छं रोगेण व सोगेण व, दुक्खेण व जं जडाण उल्लसइ / मग्गति न वेरग्गं, तं विबुधा अप्पकालं ति सुहियस्स व दुहियस्स व, जं वेरग्गं भवे विवेएण / पायं अपच्चवायं, तं चिय चारित्ततरुबीयं जे जे भावा संसार - कारणं हुंति रागवंताणं / ते चेव विरत्ताणं, निव्वुइपहसाहगा भणिया जं भत्तं पाणं वा, सरसं आसाईऊण नच्चेइ। तं मलमुत्तनिमित्तं - ति कस्स न जणेइ वेरग्गं / जेण अलंकारेणं, अलंकिओ होइ रमणिमणइट्ठो / सो वि परमत्थनास - त्ति कस्स न जणेइ वेरग्गं पासंतो फासंतो, जं रमणि मन्नए महासुक्खं। सा वि कूडी कूडाणं ति कस्स न जणेइ वेरग्गं दव्वस्स जस्स कज्जे नियए पाणे गणेइ तिणरूवे / सो वि खणदिट्ठ नट्ठो ति कस्स न जणेइ वेरग्गं जं पालियरज्जसिरिं, मन्नइ अमरेसरं व अप्पाणं / सा नरयगइनिमित्तं ति कस्स न जणेइ वेरग्गं एवं सव्वे भावे, भावेमाणे विरत्तिहेउहि / को नायरिज्ज. कुसलो, परिणामे सुंदरं चरणं // 230 // // 231 // // 232 // // 233 // // 234 // // 235 // 247