________________ // 178 // // 179 // // 180 // // 181 // // 182 // // 183 // सामि करेई निउणं, मित्तं सगुणं कलत्तमणुरत्तं / उवरयइ लद्धरिद्धी, चेइयदव्वं न भक्खेइ मज्जायमलंघतो, संकंतो कुणइ सव्वकज्जाइं। अवरोहं पि विसंतो, विस्ससणिज्जो सुसीलो त्ति पच्छित्तच्छिन्नपावो, पच्चक्खाणम्मि सुट्ट आउत्तो। पडिणीयवारओ गुणि-रई अगुणेसु मज्झत्थो कज्जं समारभंतो, हियमहियं वा विमंसए पढमं / अविमट्ठकारिणो हुंति, आवयाओ अकित्ती वा पासत्थाईण फुडं, अहम्मकम्मं निरिक्खए तह वि। सिढिलो होई न धम्मे, एसो चिय वंचिउ त्ति मई साहुस्स कह वि खलियं, दट्ठण न तत्थ होइ निन्नेहो / पुण एगंते अम्मा पिउ व्व से चोयणं देइ . सीले तवचरणम्मि य, आरंभविवज्जणे जिणच्चणए / आवस्सए पयत्तं, करेइ पव्वेसु मविसेसं ववहारसुद्धिमेगं, दोसु भवेसु हियं च चिंतेइ। . साहेइ तिन्नि वग्गो, बाहेइ न भावणा चउरो समरइ पणपरमेट्ठी, रिउच्छक्कं अंतरंगमुवरमेइ। अवगणइ सत्तवसणे, बहुमन्नइ अट्ठबुद्धिगुणे नव खित्ते ववइ धणं, जसेण जाणिज्जए दसदिसासु / दसणवयमाईया, इक्कारस फासए पडिमा एवं परिवर्द्धती, कायव्वा सावगाण गुणसंखा। जा सीलंगसहस्से, अट्ठारस भावए मुणीणं सेविज्ज सुद्धभावं, आरंभे बहुविहे वि कुणमाणे / तेण विणा गेहीणं, न पावमलसोहणोवाओ 243 // 184 // // 185 // // 186 // // 187 // // 188 // // 189 //