________________ सव्वारंभविवित्तं, पत्तं दोसेहि वज्जियं देयं / / दायामायारहिओ, जइ जुज्जइ तो फलं पुन्नं // 166 // करुणाइ परिक्खाए, लोभेण भयेण अमरिसेणं वा। ... जसपसिणट्ठा दाणं, अरिहंति कया वि न हु मुणिणो - // 167 // जं कालविसेसेणं, पत्ते भावेण दिज्जए दाणं। तं कप्पगुमचिंता-मणीण माहप्पमवहरइ // 168 // परमन्नं च्छन्नं साहुसंगमे संगमेण जं दिन्नं / . तं दाणप्पभवाए, रिद्धिए पुण कयं फ्यडं // 169 // इइ बारस धरइ वए, गिही जहासत्ति छसु विभंगेसु / पत्तेयं पत्तेयं, अइयारे पंच मुंचंतो // 170 // इत्थवया जावकहा, आइमा अट्ठ इत्तरा चउरो। तह मूलगुणा पंच, इमाओ उत्तरा गुणा सत्त / 171 // जेसिं अहिगयधम्मो, हंसाण सरं व होइ अभिगम्मो / जह विण्णा वुच्छामि, ते गुणा देसविरयाणं // 172 // बहुगुणआइन्ने वि हु, नगरे गामे व तत्थ न वसेइ / जत्थ न विज्जइ चेइय-साहम्मियसाहुसामग्गी // 173 // पासंडिपारदारिय-नडनिद्दयरोसणाण पिसुणाण / धुत्तअमित्ताइण य, पासे वासं परिहरेइ // 174 // अम्मापिउणभत्तो, कुलसीलसमेहिं विहियवीवाहो / दीणाऽतिहिसाहूणं, पडिवत्तिकरो जहाजुग्गं . // 175 // परिहरइ जणविरुद्धं, दीहरसोसं च मम्मवयणं च। . अरणो अरिणोवि पिओ, परतत्तिविवज्जिओ होइ // 176 // मुज्जइ महिमं न ताण दट्ठण सुलसा व्व, .. . गीयत्थाणं पासे, सुणेइ धम्मं जिणाभिहियं // 177 // 240