________________ // 130 // // 131 // // 132 // // 133 // // 134 // // 135 // एयाइं पंच अणुव्वयाइं इत्तो गुणव्वया तिन्नि / तत्थ पढमं दिसिवयं, उड्डाहोतिरियदिसिमाणं . भुवणक्कमणसमत्थे, लोभसमुद्दे विवड्डमाणम्मि। कुणइ दिसापरिमाणं, सुसावओ सेउबंधं व करुणावल्लीबीयं, जइ कुव्वंतो दिसासु परिमाणं / राया असोगचंदो, ता नरए नेव निवडतो भोयणकम्मेहिं दुहा, बीयं भोगोवभोगमाणवयं / भोयणओ सावज्जं, उस्सग्गेणं परिहरति तह अतरंतो वज्ज़इ, बहुसावज्जाइं एस भुज्जाई / बावीसं अन्नाइ वि, जहारिहं नायजिणधम्मो अइपोसियं पि विहडइ, अंते एयं कुमित्तमिव देहं / सावज्जभुज्जपावं, को तस्स कए समायरइ मंसाईणं नियम धीमं पाणच्चये वि पालंतो। पावइ परम्मि लोए, सुरभोए बंकचूलो व कम्माओ जइ कम्म, विणा न तीरेइ तिव्वहेउओ। पनरसकम्मादाणे, चइए अन्नं पि खरकम्म इयरं पि हु सावज्जं, पढमं कम्मं न तं समारभइ / जं दट्टण पयट्टइ, आरंभे अबिरओ लोओ दंडिज्जइ जेण जिओ, वज्जिय नियदेहसयणधम्मटुं / सो आरंभो केवल-पावफलोऽणत्थदंड त्ति अक्झाणपावउवएस-हिंसदाणप्पमायचरिएहिं / जं चउहा सो मुच्चइ, गुणव्वयं तं भवे तइयं अनियट्टीपरिणामो, अट्टे रुद्दे इमं अवज्झाणं / दम वसहे कुणसु किसिं, इच्चाइ पावउवएसं 239 // 136 // // 137 // // 138 // // 139 // // 140 // // 141 //