________________ // 82 // // 83 // // 84 // // 85 // // 86 // // 87 // जाणंतो विरइगुणे, गेही गिण्हेज्ज बारसवयाई / तत्थ पढमं अहिंसा-वयं जिणंदेहि निद्दिटुं तसजंतू संकप्पिय, निम्मंतू न वि हणेइ निरवक्खो। वच्चसि से जयणा, न तं विणा जं वयस्स फलं जं जं घरवावारं, कुणइ गिही तत्थ तत्थ आरंभो / आरंभे वि हु जयणं, तरतमजोएण चितेइ जो परजीवे रक्खइ, रक्खइ परमत्थओ स अप्पाणं / जो परजीवे हिंसइ, सो हिंसइ अप्पणा अप्पं जीवस्स नत्थि मुल्लं, बहुएहिं वि कणयभूमिरयणेहिं / ता कह जीववहाओ, छुट्टइ कणयाइ दाणेण इक्कस्स कए नियजी-वियस्स मारंति जीवकोडीओ। तं जीवियं विणस्सइ, ते उ कया वेरिणो सव्वे रोगाओ सावओ वा, सभावओ वा वि अबलया सेया। जं पुण परहणणट्ठा, तं बलियत्तं पि मा होउ जे हिंसं कुणमाणा, अन्नाणा अहिलसंति धम्मफलं / गयणगयकमलपरिमल, माइग्घेउं मणो तेसिं सुहसोहग्गबलाउ य, धीरिमकंती फलं अहिंसाए / रोगासोगविओगा-बलत्तभिई उ हिंसाए परजीवरक्खणाओ, सुकयं कणयं व गहिय जियजीवं / धूलि व्व जेण चत्तं, तं मेयज्जं मुर्णि थुणिमो कन्नागोभूअलियं, नासवहारं च कूडसक्खिज्जं / थूलमलीयं पंचह, चएइ सुहुमं पि जहसत्ति पुज्जो पिउ व्व गेओ गुरु व्व जणणि व्व जणियवीसासो। सच्चेण नरो सुहओ, सहि व्व निवइ व्व नमणेज्जो 235 // 88 // / / 89 // // 90 // // 91 // // 92 // // 93 //