________________ जलगलणणंत काइय निसिभत्तसुराइ विरमणाइयं / जं अन्नेसि दुग्गं, सो मग्गो सावयकुलेसु . // 47 // सुरलोयम्मि सुरिंदा, सुक्खं तं तारिसं अणुहवंता / . . . बोहिसुलहत्तहेडं, सावयकुलजम्ममिच्छंति .. // 48 // आयण्णिण जम्मंत-रम्मि सुहयस्स तारिसं उदयं / सावयकुलेसु पेस-त्तणं पि बाढं सुहावेइ // 49 // विमलं पि कुलं अहलं, जइ लब्भइ धम्मदेसओ न गुरू / पत्तं पि जाणवत्तं, विहलं निज्जाम्रएण विणा // 50 // छत्तीसगुणसमेओ, तयभावे अप्पमत्तगीयत्थो / .. जो सो पोअव्व गुरू, तरेइ तारेइ भवजलहि // 51 // जत्थ न मणी न दीवा, न य चंदा न य रवि वि दिप्पंति / तं पि सुगुरूवएसा, अत्थं हेलाइ पयडंति // 52 // नीणिति कहं भविया, गंभीराओ भवंधकूवाओ। जइ अवलंबं सुगुरू-वएसरासीओ न करिति // 53 // न य चोयंति पमत्तं, नेव पयासंति विहिपथं सम्मं / सव्वत्थ चाडुवाई, ते गुरुणो भवपहसहाया // 54 // खीणो वि धम्मधाऊ, पएसिरज्जम्मि जं समुल्लंसिओ / तं किर सम्मं सेविय-गुरुचरण रसायणस्स बलं // 55 // निसुणिय गुरुवयणाण वि, दुलहो देहिण धम्मपरिणामो / जलहरजलसित्ताणं, खित्ताणं पवरवाउ व्व // 56 // किं कुणइ ताण सुगुरु, जेसि हियए ण वासणावासो / मेहो वि अमेहो ऊस-रम्मि उप्पाइउं बीयं // 57 // लहिऊण वि सामग्गिं, भावो भव्वाण न उ अभव्वाणं / उअ इत्थ संबपालय-दिटुंतं नेमिनमणम्मि . // 58 // 232