________________ पू. आ.श्रीजयशेखरसूरिविरचितम् // उपदेशचिंतामणिः // अधिकार-१ तित्थयरे भयवंते, परमगुरु गुरुयअइसयसमिद्धे / धम्मपह पत्तवरसिरि - महिंदवंदियगुणे वंदे // 1 // पुव्वपहा पुण्णपया, तिमग्गगा सायरे ठिया सम्मं / अवणेउ पावपंकं, जिनवाणी तियससरिय व्व // 2 // चिंतियसुहयं सुहयं, जणाण सुरसत्थसंगयं वोच्छं। गुरुवयणेणं चिंता-मणि व उवएससारमहं . . . // 3 // इह जिणधम्मपसंसा, तस्सामग्गी य देसविरई य / / सव्वविरई य तत्तो, एए चउरो अहीगारा . .. // 4 // जयइ जगज्जीवहियओ, हेऊ सव्याण लद्धिरिद्धीणं // . उवसग्गवग्गहरणो, गुणमणिरयणायरो धम्मो चउसु वि पुरिसत्थेसु, धम्मं चिय उवइसंति धुरि विबुहा / जं अत्थकाममोक्खा, धम्मेण जणे जणिज्जति // 6 // अलसत्तणे वि कस्सइ, होइ सिरी उज्झमे वि नन्नस्स / अद्दिट्ठसाहणं तो, धम्मो चिय जयइ तत्थेगो . // 7 // एगस्स कामियसुहं, बहु समाणे वि भोगसंयोगे। . इअरस्स न तारिसयं, को इह हेऊ विणा धम्मो // 8 // धम्मज्झाणं आलं - बिउण जं सुक्कमोअरइ खवगो / ता तेण निम्मिओ किर, मुक्खो वि णुअत्तए धम्मं // 9 // नामेण चिय धम्मं, गहिऊण जडा लहंति दोगच्चं / ता कणयंव परिक्खा - पुव्वं गिण्हंति तं धीरा // 10 // कणए हुंति परिक्खा, कसछेअणतावताडणाइहिं / धम्मे उवसमकरुणा-बंभअदंभत्तणाइहिं // 11 // 228