________________ पढंतमाणाण मुणतयाणं, भव्वाण सड्ढाण दिणस्स किच्चं / तिलोगनाहाण जिणाण सासणे, भवेउ ताणं तु सुनिच्चलं मणं // 341 काऊण सड्ढाण दिणस्स किच्चं, जं किंचि पुन्नं मइ अज्जियंति / तेणं तु भव्वाण भवुब्भवाण, तिक्खाण दुक्खाण भवेउ नासों // 342 // अयाणमाणेण जिणुत्तमाणं, मयं महत्थं मइविब्भमेणं जं मे विरुद्धं इह तस्स वुत्तं, तं मज्झ मिच्छा मिह दुक्कडं ति // 343 / / . पू.आ.श्रीरत्नशेखरसूरिविरचिता // श्राद्धविधिः // सिरिवीरजिणं पणमिअ, सुआओ साहेमि किमवि सड्ढविहिं / रायगिहे जगगुरुणा, जहभणियं अभयपुंटेणं दिणरत्तिपव्वचउमासिगवच्छरजम्मकिच्चदाराई / सड्ढाणणुग्गहठ्ठा, सड्ढविहिए भणिज्जंति सड्ढत्तणस्स जुग्गो भद्दगपगई विसेसनिउणमई / नयमग्गरई तह दढनिअवयणठिई विणिट्ठिो // 3 // नामाई चउभेओ सड्ढो भावेण इत्थ अहिगारो / तिविहो अ भावसड्ढो दंसण-वय उत्तरगुणेहिं नवकारेण विबुद्धो, सरेई सो सकुल-धम्म-निअमाई / पडिक्कमिअ सुई पूईअ, गिहे जिणं कुणइ संवरणं विहिणा जिणं जिणगेहे गंतुं अच्चेइ उचियचितरओ। . उच्चरइ पच्चक्खाणं दढपंचाचारगुरुपासे // 6 // ववहारसुद्धि देसाइ विरुद्धचाय उचिय चरणेहिं / तो कुणई अत्थचिंतं निव्वाहितो निअं धम्म // 4 // // 7 // 226