________________ ता ते सुधन्ना सुकयत्थजम्मा, ते पूयणिज्जा ससुरासुराणं / मुत्तूण गेहं तु दुहाण वासं, बालत्तणे. जे उ वयं पवन्ना // 317 // वेरग्गतिक्खखग्गेणं, छिदिउं मोहबंधणं / निक्खंता जे महासत्ता, अदिपियसंगमा // 318 // ते धन्ना ताण नमो, दासोहं ताण संजमधराणं / अद्धच्छिपिच्छरीओ जाण, न हियए खुडुक्कंति . // 319 // ता किं च तं हुज्जं दिणं मुहत्तं, जहिं पमुत्तूण गिहत्थभावं / निव्वाणसुक्खाण निहाणभूयं, अणवज्जपव्वज्ज पवज्जिमोऽहं // 320 // पुव्वुत्तं सव्व काऊणं, ठावित्ता चित्तमंदिरे / . भयवं परमिट्ठि त्ति, तओ निद्द तु गच्छई // 321 // जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य / अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसति जंतुणो // 322 // इक्खूण जंताणि विवज्जयामि, कुंताई सिलाइ वणिज्जयं च / कलहं च झंझं च चएमि निच्चं, सव्वाण पावाणमिमं खु मूलं // 323 // किं मे कडं किंच मे किच्चसेसं, किं सक्कणिज्जं न समायरामि। . किं मे परो पासइ किं च अप्पा, किं वाहं खलियं न विवज्जयामि // 324 जीवे नो वहई जो उ, बायरे सुहमे तहा / अलियं च भासए नेव, अदत्तं नेव गिण्हए // 325 // बंभं तु धारए जो उ, नवगुत्तीसणाहयं / परिग्गहं विवज्जेइ, असमंजसकारयं // 326 // हिरनं च सुवन्नं च, कंसं संखं पवालयं / धणं धन्नं कलत्तं च, जो विवज्जेइ सव्वहा - // 327 // राईभोयणाओ य, जो विरत्तो महायसो / संनिही संचयं जो उ, न करेइ न कयाइवि . // 328 // 24