________________ नेवदारं पिहावेइ, भुंजमाणो सुसावओ। अणुकंपा जिणिदेहिं सड्ढाणं न निवारिया // 221 // सव्वेहिं पि जिणेहिं, दुज्जयजियरागदोसमोहेहिं / ... अणुकंपादाणं सड्ढायाण, न कहिचि पडिसिद्धं // 222 // पेससुण्हाइवग्गस्स, काउं भोयणचिंतणं / / भुंजए जं च साहूणं, दिन्नं असणमाइयं // 223 // अणंतकायं बहुबीयवत्थं, तुच्छोसहिं चेव विवज्जिऊणं / विगईण दव्वाण य काउ संखं, भुंजेइ तत्तो समयाविरुद्धं // 224 // देवं गुरुं च वंदित्ता, काउं संवरणं तहा / . अंतिये साहूमाईणं, कुज्जा सज्झायमुत्तमं // 225 // उस्सग्गेणं तु सड्ढो उ, सचित्ताहारवज्जओ / इक्कासणगभोई य, बंभयारी तहेव य , // 226 // अह न सक्कइ काउं, जे एकभत्तं जओ गिही / / दिवसस्स अट्ठमे भागे, तओ भुंजे सुसावओ // 227 // तज्जोणियाण जीवाणं, तहा संपाइमाण य / . निसिभत्ते वहो दिट्ठो, सव्वदंसीहिं सव्वहा // 228 // निसिं जे नहि वज्जंति, बाला कुग्गहमोहिया / एलगच्छुव्व दुक्खाई, लहंते मरुओ जहा // 229 // तओ वियालवेलाए, अस्थमंते दिवायरे / पुव्वुत्तेण विहाणेणं, पुणो वंदे जिणुत्तमे // 230 // तओ पोसहसालाए, गंतूणं तु पमज्जए / ठावित्ता तत्थ सूरिं तु, तओ सामाइयं करे // 231 // काऊण य सामाइयं, इरियं पडिक्कमिय गमणमालोए / वंदित्तु सूरिमाई, सज्झायावस्सयं कुणई . // 232 // 216