________________ राया देसो नगरं भवणं, तह गिहिवई य सो धनो। विहरंति जत्थ साहू, अणुग्गहं मन्नमाणाणं // 197 // जो देइ उवस्सयं, मुणिवराण गुणसयसहस्सकलियाणं / .. तेणं दिन्ना वत्थन्नपान-सयणासणविगप्पा // 198 // तओ तेसु नियत्तेसु गच्छइ जाव दारयं / .. वंदित्ता मुणिणो ताहे, करे अन्नं तओ इमं // 199 // साहम्मियाण वच्छलं, कायव्वं भत्तिनिब्भरं / / देसियं सव्वदंसीहिं, सासणस्स पभावणं // 200 // महाणुभावेण गुणायरेणं, वयरेण पुव्वं सुयसायरेणं / सुयं सरंतेण जिणुत्तमाणं, वच्छल्लयं तेण कयं तु जम्हा // 201 // तहा सव्वपयत्तेणं, जो नमुक्कारधारओ / सावओ सो वि दट्ठव्वो, जहा परमबंधवो // 202 // विवायं कलहं चेव, सव्वहा परिवज्जए / साहम्मिएहिं सद्धिं तु, जओ एवं वियाहियं // 203 // जो किर पहणइ साहम्मियम्मि कोवेण दंसणमयम्मि / आसायणं तु सो कुणइ, निक्किवो लोगबंधूणं // 204 // तं अत्थं तं च सामत्थं, विनाणं सुउत्तमं / साहम्मियाण कज्जम्मि, जं विच्चंति सुसावया // 205 // अन्नन्नदेसाण समागयाणं, अन्नन्नजाईओ समुब्भवाणं / साहम्मियाणं गुणसुट्ठियाणं, तित्थंकराणं वयणेट्ठियाणं // 206 // वत्थन्नपाणासणखाइमेहिं, पुप्फेहिं पत्तेहि य पुष्फलेहिं / . सुसावयाणं करणिज्जमेयं, कयं तु जम्हा भरहाहिवेणं // 207 // वज्जाउहस्स रामेणं, जहा वच्छल्लयं कयं / .. ससत्ति अणुरूवं तु, तहा वच्छल्लयं करे . // 208 // 14