________________ आसणेण निमंतित्ता, तओ परियणसंजुओ। वंदए मुणिणो पाए खंताइगुणसंजुए // 173 // देसं-खित्तं तु जाणित्ता, अवत्थं परिसं तहा / विज्जोव्व रोगियस्सेवं, तओ किरियं पउंजए * // 174 // संथरणम्मि असुद्धं, दुण्ह वि गिण्हंतदितयाण हियं / आउरदिटुंतेणं, तं चेव हियं असंथरणे // 175 // एवं देसं तु खित्तं तु, वियाणित्ता य सावओ / फासुयं एसणिज्जं च, देइ जं जस्स जुग्गयं // 176 // असणं पाणगं चेव, खाइमं साइमं तहा। ओसहं भेसहं चेव, फासुयं एसणिज्जयं // 177 // वत्थं पत्तं च पुत्थं च, कंबलं पायपुंछणं / दंडं संथारयं सिज्जं, अन्नह जं किंचि सुज्झइ // 178 // जओ सुपत्तदाणेणं, कल्लाणं बोहि उत्तमा / देसिया सुहविवागम्मि, अक्खाणा. दस उत्तमा .. // 179 // सुबाहु 1 भद्दनंदी य, 2 सुजाय 3 वासव 4 तहेव जिणदासा 5 / धणवइ 6 महब्बला, 7 भद्दनंदि 8 महचंद 9 वरदत्ता 10 // 180 // इहयं चेव जम्मम्मि, उत्तमा भोगसंपया / सिज्जंसो इव पावंति, मूलदेवो जहा निवो // 181 // धन्नेणं सालिभद्देणं, कयवन्नेणं तहेव य / इहलोए परलोए य, जहा पत्ता य सुसंपया // 182 // अन्नो वि पाविही एवं, नत्थि इत्थं तु संसओ / पूइही मुणिणो, जो उ भत्तिमंतो सुसावओ // 183 // मणेणं तह वायाए, कारणं च तहेव य / अप्पाणं कयकिच्चं तु, मन्नमाणो सुसावओ // 184 // 212