________________ अप्पा उद्धरिओ च्चिअ, उद्धरियो तह य तेहिं नियवंसो / अन्ने य भव्वसत्ता, अणुमोयंता य जिणभवणं . // 101 // . खवियं नीयागोयं, उचागोयं च बंधियं तेहिं / कुगइपहो निट्ठविओ, सुगइपहो अज्जिओ य तहा // 102 // इहलोगम्मि सुकित्ती, सुपरिसमग्गो य देसिओ होइ / अन्नसिं भव्वाण, जिणभवणं उद्धरंतेहिं // 103 // सिझंति केइ तेण वि, भवेण इंदत्तणं च पावंति / इंदसमा केइ पुणो, सुरसुक्खं अणुभवेऊणं // 104 // मणुयत्ते संपत्ता, इक्खागकुलेसु तहय हरिवंसे / / सेणावई अमच्चा, इब्भसुया चेव जायंति // 105 // कलाकलावे कुसला कुलीणा, सयाणुकूला सरला सुसला / सदेवमच्चासुरसुंदरीणं, आणंदयारी मणलोयणाणं // 106 // चंदुव्व सोमयाए, सूरो वा तेयवंतया / रइनाहुव्व रूवेणं, भरहो वा जणंइट्ठया कप्पद्रुमुव्व चिंतामणि व्व, चक्की व वासुदेवा वा / पूइज्जति जणेणं, जिन्नुद्धारस्स कत्तारो // 108 // भुत्तूण वरे भोए, काऊणं संजमं च अकलंकं / खविऊण कम्मरासिं, सिद्धिपयं झत्ति पार्विति // 109 // इयजिन्नुद्धारो जिणवरेहि, सव्वेहिं वनिओ गुरुओ। मुक्खंगनाणसुरसंप-याण इह कारणं परमं // 110 // पुणो वि चिंतए तत्थ, समुग्गाईण किच्चयं / अन्नं च दुत्थियं जं तु, तं सव्वं सुत्थियं करे // 111 // भक्खेइ जो उविक्खेइ, जिणदव्वं तु सावओ। पन्नाहीणो भवे सो उ, लिप्पए पावकम्मुणा // 112 // 206