________________ // 89 // // 90 // // 91 // // 92 // // 93 // // 94 // निदं विकहं वज्जिज्जा, काऊणं अंजलि सिरे / कण्णंजलीहिँ भत्तीए घुटे सिद्धंतमोसहं अन्नाणमोहमिच्छत्त-महावाहिविरेयणं / कुग्गहविसघत्थाणं, महामंतो जिणागमो धम्माधम्मं तहा किच्चं, जुत्ताजुत्तं तहेव य / देवा य देवलोगा य, सिद्धा नेरइया तहा जं एमाइं पयत्था, आगमेण वियाणइ / उज्झित्ता सव्ववावारं, तओ य तं निसामए अन्नं च जीवाईणं, कुणई सद्दहणं तहा / ससंकियाण अत्थाणं, कुज्जा पुच्छं विअक्खणो सम्मं वियारियव्वं, अत्थपयं भावणापहाणेहिं / विसए य ठावियव्वं, बहुसुयगुरुणो सगासाओ संसया जायए मिच्छं, मिच्छत्ताओ भवो भवे / भवोदहि पि पत्ताणं, जीवाणं दुहसायरो . तम्हा नायतत्तेणं, सुत्तं अत्थं अहिज्जिउं / निस्संकिएण होयव्वं, अंबडो अभउ (यो) जहा निस्सामित्ता य सिद्धतं, तओ किच्चं निरुवए / एयं च इत्थ कायव्वं, एयं उद्धरियव्वयं तं तु सव्वं निरूवित्ता, करे जं करणिज्जयं / सओ य परओ चेव, कायव्यं जिणमंदिरे तं नाणं तं च विनाणं, तं कलासु य कोसलं / सा बुद्धी पोरिसं तं च, देवकज्जेण जं वए जिणभवणाई जे उद्धरंति, भत्तीए सडियपडियाइं / ते उद्धरंति अप्पं, भीमाओ भवसमुद्दाओ 205 // 95 // // 96 // // 97 // // 98 // // 99 // // 100 //