________________ // 2 // // 3 // // 4 // पू.श्री. उमास्वातिविरचिता ॥श्रावकप्रज्ञप्तिः॥ अरहंते बंदित्ता सावगधम्म दुवालसविहं पि। वोच्छामि समासेणं गुरुवएसाणुसारेणं संपत्तदंसणाई पइदियहं जइजणा सुणेई य। सामायारिं परमं जो खलु तं सावगं बिन्ति नवनवसंवेगो खलु नाणावरणखओवसमभावो। तत्ताहिगमो य तहा जिणवयणायन्त्रणस्स गुणा न वितं करेइ देहो न य सयणो नेय वित्तसंघाओ। जिणवयणसवणजणिया जं संवेगाइया लोए होइ दढं अणुराओ जिणवयणे परमनिव्वुइकरम्मि। सवणाइगोयरो तह सम्मंद्दिट्ठिस्स जीवस्स पञ्चेव अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं च हुंति तिन्नेव / सिक्खावयाई चउरो सावगधम्मो दुवालसहा एयस्स मूलवत्थू सम्मत्तं तं च गंठिभेयम्मि। खयउवसमाइ तिविहं सुहायपरिणामरूवं तु जं जीवकम्मजोए जुज्जइ एयं अओ तयं पुदि। वोच्छं तओ कमेणं पच्छा तिविहं पि सम्मत्तं जीवो अणाइनिहणो नाणावरणाइकम्मसंजुत्तो / मिच्छत्ताइनिमित्तं कम्मं पुण होइ अट्ठविहं पढमं नाणावरणं बीयं पुण होइ दंसणावरणं / तइयं च वेयणीयं तहा चउत्थं च मोहणीयं आऊअ नाम गोयं चरमं पुण अंतराइयं होइ / मूलपयडीउ एया उत्तरपयडी अओ वुच्छं // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // | // 10 // // 11 // 164