________________ // 57 // // 58 // // 59 // // 60 // // 61 // // 62 // मुच्छा परिग्गहो इइ अइरित्त असुद्ध तह ममत्ते य / एयस्स उ जा विरई सरूवमेयं तु नायव्वं खेत्तं वत्थु हिरन्नं सुवनधणधनकुवियपरिमाणं / दुपयं चउप्पयं पि य नवहा उ इमं वयं भणियं अत्थं अणत्थविसयं संतोसविवज्जियं कुगइमूलं / तप्परिमाणं नाउं कुणंति संसार भयभीया। अनियत्ता उण पुरिसा, लहंति दुक्खाइं गरूवाई / जह चारुदत्तसड्ढो पब्भट्ठो माउलाहितो जे इह परिणामकडा संतोसपरा दढव्वया धीरा / ते जिणदासो व्व सया हवंति सुहभाइणो लोए संभरइ वारवारं मोक्कलतरयं च गेण्हइस्सामि / एयं वयं पुणो चिय मणेण न य चिंतए एवं खित्ताइहिरण्णाईधणाइदुपयाइकुप्पमाण कमे / . जोयणपयाणबंधणकारणभावेहिं नो कुणइ . जइ जाणंतो गिण्हइ अहियं धन्नाइं तो भवे भंगो / अइसंकिलिट्ठचित्तस्स तस्स परिणामविरहाओ चत्तकलत्तपुत्तसुहिसयणसंबंधमित्तवग्गया, खेत्तसुवण्णधणधण्णविवज्जियसयलसंगया / देहाहारवत्थपत्ताइसु दुरुज्झियममत्तया, .. चिन्तसु सुविहिया तं सावय ! मोक्खपहम्मि पत्तया तत्तायगोलकप्पे अप्पा अनिवारिओ वहं कुणइ / इय जा दिसासु विरई गुणव्वयं तमिह नायव्वं परिमियखेत्ताउ बहिं जीवाणं अभयदाणबुद्धीए / दिसिवयगहणपरिणाम उप्पज्जइ तिव्वसड्ढस्स 157 / / 63 / / // 64 // // 65 // // 66 // // 67 //