________________ मिच्छमहण्णवतारण-तरियं आगमसमुद्दबिंदुसमं / कुग्गहग्गहमंतं, संदेहविसोसहिं परमं / एयं दंसणसुद्धि, सव्वे भव्वा पढंतु निसुणंतु / जाणंतु कुणंतु लहंतु, सिवसुहं सासयं झत्ति // 270 // ... // 271 // श्रीमद्देवगुप्तसूरिविरचितम् / // नवपद प्रकरणम् // नमिऊण वद्धमाणं मिच्छं सम्मं वयाई संलेहा / नव भेयाई वोच्छं सड्ढाणमणुग्गहट्टाए जारिसओ जइभेओ जह जायइ जह व एत्थ दोस गुणा / / जयणा जह अइयारा भंगो तह भावणा नेया // 2 // देवो धम्मो मग्गो साहू तत्ताणि चेव सम्मत्तं / तविवरीयं मिच्छत्तदंसणं देसियं समए // 3 // आभिग्गहियमणाभिग्गहियं तह अभिनिवेसियं चेव / संसइयमणाभोगं मिच्छत्तं पंचहा होइ // 4 // मइभेया पुव्वुग्गह संसग्गीए य अभिनिवेसेणं / / / चउहा खलु मिच्छत्तं साहूण अदंसणेणऽहवा - // 5 // मिच्छत्तपरिणओ इह नारयतिरिएसु भमइ इह जीवो / जह नंदो मणियारो तिविक्कमो जह य भट्टो वा // 6 // मिच्छत्तस्स गुणोऽयं अणभिनिवेसेण लहइ सम्मत्तं / .. जह इंदनागमुणिणा गोयमपडिबोहिएणं ति जयणा लहुया गरुई अम्मडसीसेहऽदत्तभीएहिं / . मरणब्भुवगमकरणं बंभे कप्पे समुप्पन्ना . // 8 // 152