________________ मन्नइ तमेव सच्चं, निस्संकं जं जिणेहि पन्नत्तं / सुहपरिणामो सम्मं, कंखाइविसुत्तियारहिओ // 259 // एवंविहपरिणामो, सम्मद्दिट्ठी जिणेहिं पन्नत्तो। एसो उ भवसमुदं, लंघइ थोवेण कालेण // 260 // सम्मद्दिहिस्स वि अविरयस्स, न तवो बहुप्फलो होइ / हवइ हु हत्थिण्हाणं, बुंदंच्छिययं व तं तस्स // 261 // चरणकरणेहिं रहिओ, न सिज्झइ सुद्धसम्मदिट्ठी वि / / जेणागमम्मि सिट्ठो, रहंधपंगूण दिटुंतो // 262 // वयसमणधम्म संजम-वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। नाणाइतियं तवकोह-निग्गहाइ चरणमेयं // 263 // पिंडविसोही समिई, भावण-पडिमाय इंदियनिरोहो / पडिलेहणगुत्तीओ, अभिग्गहा चेव करणं तु // 264 // सम्मग्गस्स पयासगं इह भवे णाणं तवो सोहणं कम्माणं चिरसंचियाण निययं गुत्तीकरो संजमो। बोधव्वो नवकम्मुणो नियमणे भावेह एवं सया / एसि तिण्ह वि संगमेण भणिओ मोक्खो जिणिंदागमे // 265 // चंदादिपहवरसूरि-पयनिवहपढमवन्नेहिं / जेसि नामं तेहिं, परोवयारम्मि निरएहिं . // 266 // इयं पायं पुव्वायरिय-रइय-गाहाण संगहो एसो। विहिओ अणुग्गहत्थं, कुमग्गलग्गाण जीवाणं // 267 // जे मज्झत्था धम्म-स्थिणो य जेसिं च आगमे दिट्ठी / . तेसि उवयारकरो, एसो न उ संकिलिट्ठाणं // 268 // उवएसरयणकोसं, संदेहविसोसहिं च विउयजणा। / अहवा वि पंचरयणं, सणसुद्धिं इमं भणह // 269 // 151