________________ अइयरणं जह जातं सिवमोग्गलमाइ दीवबंभेसु / परिवडियविभंगाणं संकियमाईहिं सुत्तेहिं . // 9 // छटेणं आयावण विभंगनाणेण जीवजाणणया / ओही केवलनाणं तो भंगो होइ मिच्छस्स // 10 // भावण जह तामलिणा इड्डीविसया पुणो अणसणं च / पुणरवि खोभणकाले लहुकम्माणं इमा मेरा // 11 // जियरागदोसमोहेहिं भासियं जमिह जिणवरिंदेहिं / तं चेव होइ तच्चं इय बुद्धी होइ सम्मत्तं // 12 // एगविह दुविह तिविहं चउहा पंचविह दसविहं सम्मं / / दव्वाइकारगाइय उवसमभेएहिं वा सम्म // 13 // काऊण गंठिभेयं सहसंमुइयाए पाणिणो केइ / परवागरणा अन्ने लहंति सम्मत्तवररयणं // 14 // सम्मत्तपरिब्भट्ठो जीवो दुक्खाण भायणं होइ / नंदमणियारसेट्ठी दिटुंतो एत्थ वत्थुम्मि . . // 15 // सम्मत्तस्स गुणोऽयं अचिंतचिंतामणिस्स जं लहई। सिवमग्गमणुयसुहसंगयाणि धणसत्थवाहो व्व // 16 // लोइयतित्थे उण ण्हाणंदाणपेसवणपिंडहुणणाई / संकंतुवरागाइसु लोइयतक्करणमिच्चाइ. * // 17 // एत्थ य संका कंखा वितिगिच्छा अन्नतित्थियपसंसा / परतित्थिओवसेवा य पंच दूसंति सम्मत्तं // 18 // "सम्मत्तं पत्तं पि हु रोरेण निहाणगं व अइदुलहं / पावेहि अंतरिज्जइ पढमकसाएहिं जीवस्स // 19 // . मिच्छत्तकारणाई करेंति नो कारणे वि ते धन्ना / / इय चितेज्जा मइमं कत्तियसेट्ठी उदाहरणं // 20 // 153