________________ // 1 // // 2 // // 3 // س // 4 // ه // 5 // __ पू.आ.श्रीचन्द्रप्रभसूरिविरचितम् // दंसणसुद्धिपयरणं // पत्तभवण्णवतीरं, दुहंदवनीरं सिवंबतरुकीरं / कंचणगोरसरीरं, नमिऊण, जिणेसरं वीरं वुच्छं तुच्छमइणं, अणुग्गहत्थं समत्थभव्वाणं / सम्मत्तस्स सरुवं, संखेवेणं निसामेह सुयसायरो अपारो, आउं थोवं जिया य दुम्मेहा / तं किं पि सिक्खियव्वं, जं कज्जकरं च थोवं च मिच्छत्तमहामोहं-धयारमूढाण इत्थ जीवाणं / पुन्नेहिं कह वि जायइ, दुल्लहो सम्मत्तपरिणामो देवो धम्मो मग्गो, साहू तत्ताणि चेव सम्मत्तं / तव्विवरीयं मिच्छत्त-दंसणं देसियं समए चउतीसअइसयजुओ, अट्ठमहापाडिहेरकयसोहो / अट्ठदसदोसरहिओ, सो देवो नत्थि संदेहो . चउरो जम्मप्पभिई, इक्कारसकम्मसंखए जाए / नवदस य देवजणिए, चउतीसं अइसए वंदे कंकेल्लि-कुसुमवुट्ठी, दिव्वज्झुणि चामरा-सणाइं च / भावलय-भेरि-छत्तं, जयंति जिणपाडिहेराइं अन्नाण-कोह-मय-माण-लोह-माया-रई. य अरई य / निद्दा-सोय-अलियवयण-चोरिया-मच्छर-भयाइं पाणिवह-पेम-कीडापसंग-हासा य जस्स इइ दोसा / अट्ठारस वि पणट्ठा, नमामि देवाहिदेवं तं तस्स पुणो णामाई, तिण्णि जहत्थाई समयभणियाइं / अरिहंतो अरहंतो, अरुहंतो भावणीयाईं 129 // 6 // // 7 // .. // 8 // // 10 // // 11 //