________________ चेइयपरिवाडीए, कालं तह चेइयाइं आसज्ज / सव्वा वि जहाजोगं, कायव्वा सुद्धबोहेहिं . // 878 // सब्भावसुंदरं जं, थेवं व बहुं व धम्मणुट्ठाणं / होइ सुविसुद्धफलयं, तव्विवरीयं न उ बहुं पि // 879 // इह छेय-कूड-रूवगनायं विनायसमयसब्भावा / वनेंति पुव्वमुणिणो, तं पुण एवं मुणेयव्वं // 880 // दव्वेण य टंकण य, जुत्तो छेओ हु रूवगो होइ। टंकविहूणो दव्वे वि न खलु एगंतछेउ त्ति // 881 // अद्दव्वे टंकेण य, कूडो तेण उ विणा उ मुद्द त्ति / ' बालाइविप्पयारणमेत्तफला नियमओ होइ // 882 // एत्थ पुण वंदणाए, रुप्पसमो होइ चित्तबहुमाणो / टंकसमा विनेया, संपुन्ना बाहिरा किरिया // 883 // दोण्हं पि समाओगो, सुवंदणा छेयरूवगसरिच्छा / बीयगरूवगतुल्ला, पमाइणो भत्तिजुत्तस्स . // 884 // लाभाइनिमित्ताओ, अखंडकिरियं पि कुव्वओ तइया / उभयविहूणा नेया, अवंदणा चेव तत्तेणें // 885 // एसो इह भावत्थो, कायव्वा देसकालमासज्ज / / अप्पा वा बहुगा वा, विहिणा बहुमाणजुत्तेण // 886 // अन्नं च जिणमयम्मी, चउव्विहं वन्नियं अणुट्ठाणं / पीइजुयं भत्तिजयं, वयणपहाणं असंगं च जं कुणओ पीइरसो, वड्डइ जीवस्स उजुसहावस्स। . बालाईण व रयणे, पीइअणुट्ठाणमेयं तु // 888 // बहुमाणविसेसाओ, मंदविवेगस्स भव्वजीवस्सं / पुव्विल्लसमं करणं, भत्तिअणुट्ठाणमाहंसु // 889 // // 887 // रोगत 126