________________ इह कस्सइ होज्ज मई, नियाणकरणं इमं तु पच्चक्खं / जं पत्थणपणिहाणं, कीरइ परिथूलबुद्धीहिं .. // 854 // सुव्वइ य दसाईसुं, तित्थयरम्मि वि नियाणपडिसेहो / तम्हा न जुत्तमेयं, पणिहाणं अह गुरू भणइ .. // 855 // जं संसारनिमित्तं, पणिहाणं तं खु भन्नइ नियाणं / तं तिविहं इयलोए, परलोए. कामभोगेसु // 856 // सोहग्ग-रज्ज-बल-रूवसंपया माणुसम्मि लोगम्मि / जं पत्थिज्जइ धम्मा, इहलोयनियाणमेयं तु // 857 // वेमाणियाइसिद्धी, इंदत्ताईण पत्थणा जा उ। ... परलोयनियाणमिणं, परिहरियव्वं पयत्तेण // 858 // जो पुण सुकयसुधम्मो, पच्छा मग्गइ भवे भवे भोत्तुं / सद्दाइकामभोगे, भोगनियाणं इमं भणियं // 859 // तह जं कोवाइसया, वह-बंधण-मारणाइपणिहाणं / दीवायणपमुहाणं, तं पि नियाणं महापावं // 860 // एएसि नियाणाणं, लक्खणमेगं पि नत्थि. पणिहाणे / ता कह भणसि नियाणं ?, तहाहिभावेहि तस्सत्थं // 861 // सारीर-माणसाणं, दुक्खाण खओ त्ति होइ दुक्खंखओ / नाणावरणाईणं, कम्माण खओ उ कम्मखओ // 862 // भन्नइ समाहिमरणं, रागद्दोसेहिँ विप्पमुक्काणं / / देहस्स परिच्चाओ, भवंतकारी चरित्तीणं // 863 // सम्मचरणाइ बोही, तीसे लाभो भवे भवे पत्ती / / कम्मक्खयहेउत्ता, सिद्धफलो नियमओ एसो . // 864 // संपज्जउ मह एयं, तुह नाह पणामकरणओ सुगमं / मोक्खंगमेव सकलं, पत्थियमेयम्मि पणिहाणे . // 865 // 124