________________ गंभीरमहुरघोसं, तह तह थोत्ताइयं भणेज्जाह / जह जायइ संवेगं, सुणमाणाणं परेसि पि // 842 // विविहमहाकइरइओ, वन्निज्जंतो विचित्तउत्तीहि / कस्स न हरेइ हिययं, तित्थंकरगुणगणो गुरू ओ? // 843 // भत्तिभरनिब्भरमणो, वंदित्ता सव्वजगइबिंबाइं / मूलपडिमाइ पुरओ, पुणो वि सक्कत्थयं पढइ // 844 // चीवंदणकयकिच्चो, पमोयरोमंचचच्चियसरीरो / सक्कथएणं वंदिय, अहिमयफलपत्थणं कुणइ // 845 // दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं च बोहिलाभो य / संपज्जउ मह एयं, तुह नाह ! पणामकरणेणं // 846 // जय वीयराय ! जगगुरू ! होउ ममं तुह पभावओ भयवं ! / भवनिव्वेओ मग्गाणुसारिया इट्ठफलसिद्धी - // 847 // लोगविरुद्धच्चाओ, गुरू जणपूया परत्थकरणं च / सुहगुरू जोगो तव्वयणसेवणा आभवमखंडा // 848 // वारिज्जइ जइ वि नियाणबंधणं वीअराय ! तुह समए / तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं // 849 // एएसि एगयरं, पणिहाणं नियमओ य कायव्वं / पणिहाणंता जम्हा, संपुना वंदणा भणिया // 850 // उल्लासविसेसाओ, एत्तो अहियं पि चित्तउत्तीहि / पयडियभावाइसयं, कीरंतं गुणकरं चेव // 851 // * अहिए भावुल्लासे, अहियाहियकरणपरिणई होइ / तह. भाववंदणाए, लक्खणमेयं जओ भणियं // 852 // वेलाए विहाणेण य, तरगयचित्ताइणा य विनेओ / तव्वुडिभावभावेहि, तह य दव्वे-यरविसेसो // 853 // . 123