________________ मिच्छादसणमहणं, सम्मइंसणविसुद्धिहेउं च / चिइवंदणाइ विहिणा, पन्नत्तं वीयरागेहि // 794 // जइ वि बहुहा न तीरइ, दो वाराओ अवस्स कायव्वं / संविग्गमुणीहिँ जओ, आइन्नं वन्नियं चेव // 795 // सुहभाववुड्डिहेडं, निच्चं जिणवंदणा सिवत्थीहि / / संपुन्ना कायव्वा, विसेसओ गेहवासीहिं // 796 // आह किमेसा तुब्भे, विसेसओ सावयाणमुवइट्ठा ? / किं साहूण न नियमो ?, भणइ गुरू सुणसु परमत्थं // 797 // समणाण सावयाण य, उस्सग्गो एस चेव दट्ठव्वो / गिहिणं विसेसभणणे, बिंतीमं कारणं गुरू णो // 798 // चरणट्ठियाण किरिया, सव्वा वि जिणेदवंदणा चेव / / आणाणुपालणं चिय, जम्हा तं बिति तत्तविऊ // 799 // चरणकरणाविरोहा, साहू वंदंति हीणमहियं वा / किरियंतरे वि तेसिं, परिणामो तग्गओ चेव // 800 // गिहिणो पुण सो भावो, ताव त्ति य जाव वंदणं कुणइ / आरंभपरिग्गहवावडस्स न उ सेसकालम्मि // 801 // तम्हा संपुन्न च्चिय, जुत्ता जिणवंदणा गिहत्थाणं / सुहभाववुड्डिओ जं, जायइ कम्मक्खओ विउलो // 802 // संपुनपक्खवाई, वित्तिविरोहाइकारणा कह वि। डहरंतरं पि कुणंतो, संपुनाए फलं होइ(लहइ) // 803 // जो पुण पमायसीलो, कुग्गहगरलेण वावि हयसन्नो / संपुन्नाकरणमणो-रहं पि हियए न धारेइ // 804 // सो मोहतिमिरछाइय-दिट्ठी बहुदुक्खसावयाइन्ने / / संमग्गमपावंतो, परिभमइ चिरं भवारने // 805 // ... 118