________________ // 770 // // 771 // सव्वे वि जिणवरा ते, चउवीसं भरहखेत्तसंभूया / परमट्ठनिट्ठियट्ठा, कयकिच्चा नोवयारेणं एवं बहुप्पयारा, सिद्धा सव्वे वि दितु मे सिद्धि / आइन्नयपामन्ना, वक्खायं गाहदुगमेयं सुत्ताऽभणियं ति न संगयं ति एयं न जुज्जए वोत्तुं / सब्भावबुद्धिजणगं, सव्वं सुत्ते भणियमेव // 772 // वडइ विसुद्धभावो, भवियाणमिमेण गाहजुयलेण / / अणुहवसिद्ध एयं, भावपहाणाण भव्वाणं // 773 // थुइ-थोत्त-चित्तपमुहं, गुणकरमन्नं पि संमयं जह वा / एयं पि तहा नेयं, मज्झत्थमणेहिं विउसेहि . // 774 // जिणवंदणावसाणा, जिणगिहवासीण देव-देवीणं / संबोहणत्थमहुणा, काउस्सग्गं कुणइ एवं // 775 // वेयावच्चं जिणगिह-रक्खण-परिटुवणाइजिणकिच्चं / संती पडणीयकओ-वसग्गविनिवारणं भवणे // 776 // सम्मट्ठिी संघो, तस्स समाही मणोदुहाभावो / एएसि करणसीला, सुरवरसाहम्मिया जे उ तेसि संमाणत्थं, काउस्सग्गं करेमि एत्ताहे। अन्नत्थूससियाई-पुव्वुत्तामारकरणेणं // 778 // एत्थ उ भणेज्ज कोई, अविरइगंधाण ताणमुस्सग्गो / न हु संगच्छइ अम्हं, सावय-समणेहि कीरंतो // 779 // गुणहीणवंदणं खलु, न हु जुत्तं सव्वदेस-विरयाणं / भणइ गुरू सच्चमिणं, एत्तो च्चिय एत्थ नहि भणियं // 780 // वंदण-पूयण-सक्का-रणाइहेडं करेमि उस्सग्गं / वच्छल्लं पुण जुत्तं, जिणमयजुत्ते तणुगुणे वि // 781 // . . . . . 117 // 777 //