________________ अह थुइवाओ एसो, थुव्वइ वेयालिएहिँ जह स्त्रो / कुंतस्स सत्तपाया-लभेयणे नूण सामत्थं // 746 // अलियवयणं खु एयं, भन्नइ सुव्वन्नुणो पुरो कह णु ? / लोए वि पसिद्धमिणं, देवा सत्ता वि गेज् ति // 747 // अलियवयणं पि पावस्स कारणं वनियं जिणेदेहिं / संतगुणकित्तणा वि य, जिणाण जं वंदणा इट्टा // 748 // एवं दुहा वि एवं, चिंतिज्जंतं न संगयं भाइ / गाहासुत्तं भंते !, ता सीसउ एत्थ परमत्थो // 749 // भणइ गुरू भो ! तुमए, वियप्पकल्लोललोलहियएण / मोहं कओ पयासो, भावत्थमबुज्झमाणेण // 750 // नणु सिद्धमेव भगवओ, एसो सव्वोत्तमो नमोक्कारो / आणाणुपालणत्थं, भावनमोक्काररूव त्ति // 751 // आणाणुपालणाओ, तत्तो सव्वुत्तमा भवतरणं (?) / होइ धुवं भवियाणं, गाहासुत्तं कहमजुत्तं ? . // 752 / / ता विहिवाओ एसो, थुइवाओ वा न दोसमावहइ / सब्भूयभासणाओ, संतगुणुक्त्तिणा चेव // 753 // नणु तणुसत्ता नारी, तीसे कह घडइ एरिसं विरियं ? / . उत्तमवीरियसज्झा, होइ जओ मुत्तिसंपत्ती . // 754 // वीरियविरहाओ च्चिय, सत्तमपुढवीगई वि नों तीसे / का कह नेव्याणगमो, मुणिवर ! घडइ ? त्ति गुरू राह // 755 // विरिएण होइ हीणो, इत्थीहितो नपुंसओ लोए। सो वच्चइ नेव्वाणं, महातमं चाविगाणेणं // 756 // ता कीस न इच्छिज्जइ, सिद्धी नारीण निउणबुद्धीहिं ? / * अह सत्तमपुढवीए, गमणाभावो इहं नायं // 757 // .... . 115