________________ इंतेहिं जंतेहिँ य, बोहिनिमित्तं ति संपयत्थीहिं / अविरहियं देवेहि, जिणपयमूलं सयाकालं // 734 // बाहिरिगा वि हु सेवा, संभवइ अओ विसेसओ भणियं / : जं देवा पंजलिणो, भत्तिवसाओ नमसंति // 735 // सेवा-नमंसणाई, सुरेहिँ कीरति सुरवईणं पि। तं देवदेवमहियं, सुरवइमहियं ति संलत्तं ___ // 736 // काऊण नमोक्कार, संसइ तस्सेवऽणप्पमाहप्पं / / फलसवणाओ जम्हा, बुद्धिपहाणा पवतंति // 737 // एक्को सव्वपहाणो, अब्बीओ वावि एत्थ नायव्यो / वीरस्स नमोक्कारो, किं पुण बहुग त्ति अविअत्थो // 738 // ओहि-मणपज्जवनाणिणो वि सामन्नओ जिणा होति / . जियबहुगुरू कम्मत्ता, तेसि वरा हुंति केवलिणो // 739 // तेहितो वि पहाणो, जिणवरवसभो ति वद्धमाणजिणो / तस्स नमोक्कारो जो, माहप्पं भन्नए तस्स // 740 // संसारसागराओ, तारेइ धुवं नरं व नारिं वा / नरगहणा नरजाई, लद्धा किं नारिंगहणेण ? // 741 // अन्नाणवसा केई, सिद्धिं नेच्छंति चेव नारीणं / तेसि पडिबोहणत्थं, नारीगहणं इमं एत्थ // 742 // संसारसमुद्दाओ, संतरणं सिद्धिपयगमानत्तं / तं नारीणं पि धुवं, जायइ जिणवरनमोक्कारा // 743 // आह फुडं नहि मुणिमो, विहिवाओ एस किं व थुइवाओ? / अह विहिवयणं एयं, निरत्थयं सेसणुट्ठाणं एसो च्चिय कायव्वो, निच्चं पुरिसेण सिद्धिकामेण / सो वि न जुत्तो बीओ, एकादवि कज्जसिद्धीओ * // 745 // // 744 // 114