________________ नंदी परमसमिद्धी, सया वि णिच्चं पि संजमे चरणे / तस्स विसेसणमेयं, देव-नागाइ विनेयं . . // 686 // देवा विमाणवासी, जोइसियाई उ उवरिमा सव्वे / ... नाग-सुवन्ना भुवणाहिवासि उवलक्खणं भणियं // 687 // किन्नरगणगहणाओ, संगहिया सयलवंतरा देवा / चउविहसुरेहि सब्भूयभावओ परमभत्तीए // 688 // . दढमच्चियम्मि परिपूइयम्मि नंदी जओ हवइ चरणे / सव्वायरेण संपइ, पयओ ऽहं तम्मि मुयधम्मे // 689 // सब्भूय-नागसद्दक्खराण पढमाणमेत्थ दुब्भावो / छंदोभंगभयाओ, पाययलक्खणबलाओ वि // 690 // नीया लोयमभूया, य आणिया दोन्नि बिंदु-दुब्भावा / अत्थं गर्मति तं चिय, जो तेसिं पुव्वमेवासि // 691 // लोइज्जइ दिस्सइ जं, जहट्ठिओ केवलेण णाणेण / पंचत्थिकायमइओ, तो लोगो एत्थ घेत्तव्वो // 692 // जत्थ त्ति जम्मि सुयधम्मदप्पणे अवितहोवलंभाओ / चिट्ठइ पइट्ठिओ इव, पच्चक्खं जयमिणं सो उ // 693 // नरलोयमेत्तमेयं ति संसयावगमकारणे भणियं / तेलोक्को उड्डा-ऽहो-तिरियविभेयं तिहुयणं पि . // 694 // तस्स विसेससरूवं, नेयं मच्चासुरं ति इह मच्चा / भणिया मणुया असुरा वि दाणवा तेसि एगत्तं // 695 // एवं किर दंडो इव, मज्झग्गहणेण एत्थ संगहिओ। सुर-नारयाइरूवो, लोगो सव्वो वि दट्ठव्वो // 696 // एवं संखेवेणं, काउं सुयधम्मसंथवो भव्वो / ' अइभत्तिभरियचित्तो, आसीवायं इमं पढइ // 697 // 110