________________ // 7/182 // // 7183 // // 7184 // // 7185 // // 7 / 186 // // 7/187 // आहोपुरुषिकास्पर्धास्वशक्त्युक्त्यन्यतर्जनाः / स्तम्भदुर्विनयौद्धत्याद्याश्च मे नित्यसेवकाः . दुर्योधनदशग्रीवचमरप्रतिविष्णवः / एवंविधाः परोलक्षा मम सेवकसेवकाः दम्भोऽवददहं देव ! मृदुवाक् क्रूरकर्मकृत् / न पुनः प्राणिति प्राणी दृष्टो दुष्टाहिवन्मया अभ्युत्थानासनदानप्रणामाञ्जलियोजनाः / जनाश्चाटुवचांसि स्वीकार्यन्ते दासवन्मया छलप्रवेशविश्वासघातद्रोहधनाग्रहाः / गूढाचारमृषालापाद्या मे संततसेवकाः महाबलः पीठमहापीठावङ्गारमर्दकः / आषाढभूतिरित्याद्या बाह्या मे पक्षपातिनः लोभो बभाण बिभ्राणः पटुतां सकले बले। . एकोऽपि विवशीकर्तुं प्रभुस्त्रिभुवनीमहम् . सर्वे शृण्वन्तु देवाद्या भुजमुत्तभ्य वच्यहम् / स कश्चिदस्ति किं वापि यो नायातो वशे मम शैलारोहं स्थलाम्भोधिक्रमणं भूमिदारणम् / बिलप्रवेशं प्रेतौकोवासं मन्त्रादिसाधनम् . पाशुपाल्यं कृषि क्षुत्तृट्शीतातपनिषेवणम् / ' अपि दुष्करमादिष्टो मयाङ्गीकुरुते न किम् महारम्भममत्वेच्छामू»संक्लेशसंचयाः / कार्पण्यसाहसिक्याद्याश्चान्तराः सेवका मम तिलकः कुचिकर्णश्च केशरी नन्दभूभुजः / 'सुभूमलोभनन्द्याद्या बाह्या अपि सहस्रशः 285 // 7 / 188 // // 7189 // // 7 / 190 // // 7 / 191 // . // 7 / 192 // // 7 / 193 //