________________ // 6 / 206 // / / 6 / 207 // // 6 // 208 // // 6 / 209 // // 6 / 210 // // 6 / 211 // अविश्लेषधिया चित्ताञ्चले संबन्धिते मिथः / / पुरवता गुणाहूत्या वाद्धत पावकाचिषि चिरादिष्टार्थसंसिद्धिजातप्रीतिविहस्तयोः / / महस्तयोविवाहस्याभवत्रिभुवनोत्तरः अस्मादस्माकमङ्गस्य भद्रं भावीति भावतः / उदूढेऽत्र जगज्जीवाः सर्वे मुमुदिरेतराम् विवेकस्तत्सुखं लेभे कान्तयाहतया तया / यन्न चक्रिणि शके वा कामिनीकुञ्जकुञ्जरैः तन्नित्याश्लेषसञ्जातमहोत्साहः पदे पदे / . एवं संदर्शयामास वर्धमानपराक्रमम् द्वाविंशतिमतिक्रूरानभ्युपेतान् परीषहान् / द्वीपिनो दमयामास मृगानिव स लीलया काङ्क्षाकूलङ्कषां विश्वप्लाविनी वेगवाहिनीम् / विनावलम्बनं तीर्वा परं पारं जगाम सः महाव्रतानि पञ्चापि मन्दरान्मन्दरागधीः / . अविश्रामं समुद्दधे स एकतृणलीलया निसर्गादुपसर्गाणां द्विषां सोऽनर्गलं बलम् / / बलान्ममन्थ मन्थानो दधीवोदधिरोजसः व्युत्सर्गकरपत्रस्य धारामध्यारुरोह सः / अच्छिनचरणः कस्य करोति स्म न विस्मयम् निर्दयत्वाग्निना दीते सर्वतो लोकसद्मनि / वसन्नपि न तत्ज्वालावलीढस्तापमाप सः विललास विवेकस्य साहसिक्यं यथा यथा / तथा तथा प्रथामाप प्रेमास्मिन् संयमश्रियः / 264 // 6 / 212 // // 6 / 213 // // 6214 // // 6215 // // 6 / 216 // . // 6 / 217 //