________________ // 6 / 194 // // 6195 // // 6196 // / 6 / 197 // // 6 / 198 // // 6 / 199 // विवेकस्तु जगन्नाथप्रणिधानपरायणः / राधावेधोपदेष्टारं स्वगुरुं पर्यवदन्त तन्वन्नक्षोभया गत्या मौलिकम्पं महात्मनाम् / ययौ यत्रास्ति कोदण्डकाण्डमण्डितकुण्डकम् तत्तथा स्थापयामास स यथा तत्र संक्रमात् / चक्राणि स्पष्टमैक्षिष्ट रूपाणीव सुदर्पणे पुष्पैरष्टभिरान_हिंसाद्यैः स धनुःशरम् / कथमिष्टार्थसिद्धिः स्यात्पूज्यपूजाव्यतिक्रमे सगुणीभूतकोदण्डसंयोजितशिलीमुखः / सोऽदादानन्दनिर्वेदौ सत्सु मोहचरेषु च ऊर्ध्वदिक्कृतसन्धानोऽधोदृग् जन्तुहितेच्छया / चिरं चक्रभ्रमी: पश्यन्निभृतं स समस्थित धैर्येषुणा स चक्रौघविवरावसरं विदन् / सहसा साहसी राधामविध्यत्समितौ पटुः . तदा जयजयारावं तन्वानास्त्रिदशेश्वराः / तद्यशोविशदैः पुष्पैर्वृष्टिं तन्मूर्ध्नि चक्रिरे प्रीताः प्रावृट्पयोवाहपयसा पादपा इव। . प्रमोदं परमं प्रापुः पौरा: प्रेक्षापरायणाः . सर्वसङ्गपरित्यागवाचं वाचंयमाग्रणीः / / स्वमुखेनाददे सैष सुखं शिखिशिखासखीम् तद्वीरवृत्तिवीक्षोद्यदौत्सुक्याथ निचिक्षिते / उपसृत्याथ तत्कण्ठे संयमश्रीवरस्रजम् गीतेऽथ धवलैः कीर्तिपूरे मृसुरयौवतैः / अभये घोषिते विष्वक् चराचरतनूमताम् 263 // 6200 // // 6201 // / / 6202 // // 6 / 203 // // 6 / 204 // // 6205 //