________________ कुमारपालभूपालो यावत् पृथ्वी शशास सः / अङ्गुल्यग्रेण भूस्पशी तावत्कृच्छं स्थितः कलिः // 6147 // भाग्यैरप्यसरसां स्वर्गसौधाध्यासिनि भूधवे / कलिस्तपात्यये शुष्कभेकवद्व्यलसत्पुनः // 6148 // गुरुभक्तिं बलं बुद्धि धर्ममायुः श्रुतं सुखम् / हापयामास सोऽनन्तगुणहान्यान्वहं नृणाम् // 6149 // विरोधक्रोधदुर्बोधकूटोक्ती: कैतवं कलिम् / बर्द्धयामास सोऽनन्तगुणवृद्ध्या दिने दिने // 6 / 150 // भूपानामप्यजय्योऽसौ रक्षोवत् क्षोभयन् जगत् / अध्रौव्यात्सर्वभूतानां कालेनानञ्च पञ्चताम् // 6 / 151 // जाते कलौ कथाशेषे व्यलापीन्मोहभूपतिः। . स्मारं स्मारं गृणांस्तस्य स्वामिभक्तिबलादिकान् // 6 / 152 // रिपूणां च समुच्छेदं स्वजनानां च पोषणम् / . यथासौ कृतवान्वीरमानो कोऽपि क्रियात्तथा // 6153 // महारूपं महाप्रज्ञं महाशौर्यं महाबलम् / नरं न कुरुते प्रायश्चिरायुषमहो विधि: // 6154 // फणिनेव तरुाहेणेव वारि त्वया विना / आकम्यते सुखं जातदैन्यं सैन्यं परैर्मम . // 6 / 155 // यद्वा स्त्रीबालसुलभैरमीभिः कन्दितैरलम् / यद्येतौ मे भुजौ. क्षेमयुजौ तत्कोऽपरः क्षितौ // 6156 // भित्त्वा शोकतमः सावष्टम्भमुत्थाय भूपतिः / गोभिस्वीचमूं सूर्यसमभाः समभावयत् // 6 / 157 // तेनाश्चासितमुल्लासमासदनिखिलं बलम् / अहो आपद्गतस्यापि प्रभोः किमपि पाटवम् // 6158 // 259