________________ // 3 // 30 // // 3 / 31 // // 3132 // // 3 // 33 // // 3 // 34 / / // 3 / 35 // नेदमासन्नमप्यस्या भूपो रूपमबुध्यत / सदा यदावृतोस्त्येष तद्ज्ञानावृत्तिकर्मणा द्वैतीयीकं पुनस्तस्या रूपं बुद्धिरिति श्रुतम् / अनन्तगुणहीनं तत प्रभया मुख्यरूपतः यदधीते शृणोत्यत्ति याति जिघ्रति जल्पति / प्रादुश्छन्नं च तत्सर्वं तां साक्षीकृत्य भूपतिः चिदेषा पञ्चभिस्तीथ्यैः पौरुषीति प्रपञ्जिता / भौतीति वदताच्छेदं चार्वाकेणापि नापिता या जातु नात्यजत्कान्तमपि यान्तं भवान्तरे / ततस्तत्रैव विश्रान्ता सा सतीव्रततीव्रता बुद्धिर्बोधैकरूपापि द्वेधाभूत्सदसत्त्वतः / . घनैकरूपा पृथ्वीव माधुर्यलवणत्वतः ते च सद्बुद्ध्यसबुद्धी राज्ञोऽभूतामुत्ते प्रिये / तरणित्विट्तमस्विन्याविवान्योन्यममर्षणे / / यदाद्यदयितादिष्टः सत्कारभते नृपः / / तदेतरान्तरापत्यान्तरायं तनुतेतराम् तयोर्दुर्बुद्धिभार्याभूद्भभुजो वल्लभा भृशम् / प्रायो भवन्ति श्रीमन्तो नद्योघा इव निम्नगाः मा कार्षीत्सर्वसंहारं सुबुद्धेर्वश्य एष नः / इति दुर्बुद्धिसक्तं तं शशंसुः कर्मसेवकाः तत्रैव पुरिवास्तव्या कार्मणादिप्रयोगवित् / भोगपल्यभवत्तस्य नित्यं माया नितम्बिनी माया कर्मपरिणतिः प्रकृतिवर्गणाष्टमी / आत्मदामनिका चैते शब्दाश्चैकार्थवाचकाः 159 // 3 // 36 // // 3 / 37 // // 3 // 38 // // 3 / 39 // // 340 // // 3 / 41 //