________________ // 3 // 18 // नताम् / // 3 // 19 // // 3 // 20 // // 3 // 21 // // 3 // 22 // // 3 // 23 // न बालो न युवा नार्यो न म्लेच्छो नाङ्गना न ना / न स्थाष्णुर्न त्रसो नाणुर्न स्थूलः स प्रकीर्तितः केवलं स्फटिकाश्मेवाश्रयभेदेन भिन्नताम् / भजत्येकस्वरूपोऽपि स्वकर्मजनितेन सः सकर्मा विलसत्येषु भुवि द्यवि जले स्थले / अकर्मा प्राप्य लोकाग्रं पुन वावरोहति / यथा काष्टेऽनलस्तैलं तिले स्नेहश्च गोरसे / स्वर्णं मृदि पयः क्षीरे तथासौ स्थितवर्णणि अहंप्रत्ययविज्ञेयः सिद्धत्रैकालिकक्रियः / . अत्यक्षोऽनन्तपर्याय: कर्ता भोक्ता च कर्मणाम् चिद्रूपोऽर्थान्तरं देहादसंख्येयप्रदेशकः / / अनादिनिधनो योगिगम्यः सोऽयं स्वरूपतः अशेषशेषद्रव्याणि लोके प्रादुश्चकार सः / यथा धाममणिर्धामन्यसद्धामन्युषाभरे / एष पञ्चापि भूतानि प्रयत: समयोजयत् / सेनाङ्गानीव सेनानी रथाङ्गानीव वर्द्धकि: विनामुना जगत्सर्वं शून्यं चैतन्यशालिना / चक्षुषेव मुखं चन्द्रेणेव खं खलु दिद्युता भर्तुर्वियोगेदुःखानामनभिज्ञास्य चेतना / प्रियाऽभूद्विविधै रूपै रञ्जयन्ती हृदीश्वरम् संवित्तिरूपलब्धिश्च संविच्चिदपि चेतना / प्रज्ञात्मज्योतिरित्येते तस्या एकार्थवाचकाः तस्याः केवलसंवित्तिराद्यं रूपमकृत्रिमम् / अमजोज्ज्वल्लमुद्दाममप्रपातिमनोहरम् . 158 // 3 // 24 // // 3 / 25 // // 3 / 26 // // 3 // 27 // // 3 // 28 // // 3 / 29 //