________________ // 96 // / / 97 // // 98 // // 99 // // 100 // // 101 // कामाऽहिदृढदष्टस्य तीव्रा भवति वेदना / यया सुमोहितो जन्तुः संसारे परिवर्तते . दुःखानामाकरो यस्तु संसारस्य च वर्धनः / स एष मदनो नाम नराणां स्मृतिसूदनः संकल्पाण्डात् समुद्भूतः कामसर्पोऽतिदारुणः / राग-द्वेषद्विजिोऽसौ वशीकर्तुं न शक्यते दुष्टा चेयमनङ्गेच्छा सेयं संसारवर्द्धनी / दुःखस्योत्पादने शक्ता शक्ता वित्तस्य नाशने अहो ! ते धिषणाहीना ये स्मरस्य वशं गताः / कृत्वा कल्मषमात्मानं पातयन्ति भवार्णवे स्मरेणाऽतीवरौद्रेण नरकावर्तपातिना / अहो ! खलीकृतो लोको धर्मामृतपराङ्मुखः स्मरेण स्मरणादेव वैरं दैवनियोगतः / हृदये निहितं शल्यं प्राणिनां तापकारकम् तस्मात् कुरुत सद्वृत्तं जिनमार्गरताः सदा / येन शतखण्डशो याति स्मरशल्यं सुदुर्धरम् चित्तसंदूषणः कामस्तथा सद्गतिनाशनः / सवृत्तध्वंसनश्चासौ कामोऽनर्थपरम्परा दोषाणामाकर: कामो गुणानां च विनाशकृत् / पापस्य च निजो बन्धुरापदां चैव संङ्गमः पिशाचेनेव कामेन च्छलितं सकलं जगत् / बम्भ्रमीति परायत्तं भवाब्धौ तन्निरन्तरम् वैराग्यभावनामन्त्रस्तं निवार्य महाबलम् / स्वच्छन्दवृत्तयो धीराः सिद्धिसौख्यं प्रपेदिरे // 102 // // 103 // // 104 // // 105 // // 106 // // 107 // 119