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________________ // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // उत्तमे जन्मनि प्राप्ते चारित्रं कुरु यत्नतः / सद्धर्मे च परां भक्ति शमे च परमां रतिम् अनादिकालं जीवेन प्राप्तं दुःखं पुनः पुनः / मिथ्यामोहपरीतेन कषायवशवर्तिना सम्यक्त्वादित्यसंभिन्नं कर्मध्वान्तं विनश्यति / आसन्नभव्यसत्त्वानां काललब्ध्यादिसन्निधौ सम्यक्त्वभावशुद्धेन विषयासङ्गवर्जिना / कषायविरतेनैव भवदुःखं विहन्यते संसारध्वंसनं प्राप्य सम्यक्त्वं नाशयन्ति ये / वमन्ति तेऽमृतं पीत्वा सर्वव्याधिहरं पुनः मिथ्यात्वं परमं बीजं संसारस्य दुरात्मनः / तस्मात्तदेव मोक्तव्यं मोक्षसौख्यं जिघृक्षुणा आत्मतत्त्वं न जानन्ति मिथ्यामोहेन मोहिताः / मनुजा येन मानस्था विप्रलब्धाः कुशासनैः दुःखाच्च भीरवोऽप्येते सुधर्मं नहि कुर्वते / कर्मणा मोहनीयेन मोहिता बहवो जनाः कथं न रमते चित्तं धर्मेऽनेकसुखप्रदे। जीवानां दुःखभीरूणां प्रायो मिथ्यादृशो यतः 'दुःखं न शक्यते सोढुं पूर्वकर्मार्जितं नरैः / तस्मात् कुरुत सद्धर्मं येन तत्कर्म नश्यति सुकृतं. तु भवेद् यस्य तेन यान्ति परिक्षयम् / दुःखोत्पादनभूतानि दुष्कर्माणि समन्ततः धर्म एव सदा कार्यो मुक्त्वा व्यापारमन्यतः / यः करोति परं सौख्यं यावनिर्वाणसङ्गमम् . . . . 115 // 54 // // 55 // // 56 // // 57 // . // 58 // // 59 //
SR No.004459
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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