________________ // 1 // रसायण नाम // 2 // // 4 // // 5 // श्रीलक्ष्मीलाभगणिविरचितम् ॥वैराग्यरसायनम् // संसार विउल सायर-निवडिय-जीवाण उद्धरण-धीर। सिरी-वीरनाह जिणवर पणयपुरंदर नमो तुब्भ संवेगरयण-खाणीण पाए पणमित्तु सव्वसूरीणं। .. विरएमि पगरणमहं वेरग्गरसायणं नाम वेरग्गं इह हवइ तस्स य जीवस्स जोहु भवभीरू / इयरस्स पुणो वेरग्ग-रंगवयणं पि विससरिसं वेरग्गं खलु दुविहं निच्छयववहार-रूवमिह बुत्तं / निच्छयरूवं तं चिय जं तिरगणभावबुद्धीए ववहार वेरगं जं पररंजणकयम्मि किज्जइ य। तं पि हु कोडाकोडीवारं लद्धं च जीवेण ' अहवा वि होइ दुविहं निसग्गुवएस-भेयसंभिन्नं / संवेगं सिवकारण भूय परमत्थ-जुत्तीए निसग्गं दुभेयं बाहिर पच्चयमबाहिरं चेव / पत्तेय बुद्ध-सिद्धाण सयं संबुद्धाण तं जाणे उवएसं वेरग्गं जुयभेयविसुद्धमुत्तमं सुत्ते / बहुसवणमबहुसवणं सुगुरु समीवे हवइ तं च निम्मलमणपुहवीरुहोय जिणधम्मनीर परिसित्तो। सिवसुहफलभर-नमिओ संवेगतरू जये जयऊ रे जीव मोहपासेण अणाइकालाओ वेढिओसि तुमं / इय नाऊण य सम्मं छिंदसु तं नाणखग्गेण नरखित्तदीहकमलो दिसादलड्डे वि नागनालिल्ले। निच्चं पि कालभमरो जणमयरंदं पियइ बहुहा 288 // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 //