________________ // 36 // // 37 // // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // मूलं तेसिं तरुस्स व, सम्मत्तं जमिह होइ भव्वाणं। सद्दहणं देवयधम्म-मग्गसुस्समणतत्तेसु तं पुण निसंग्गउवएस-पमुहभेएहि दसविहं सम्मं / धारिज्ज वज्जिऊणं तिविहं तिविहेण मिच्छत्तं अइदुल्लहे सम्मत्ते, संपत्ते भोगसंगमवहाय / गिहिज्ज साहुधम्मं, दसभेयं थूलभदुव्व जह कह वि हु असमत्थो विसयपिवासाइ-सयणनेहेण / भीरुत्तेण परीसह भग्गो गिहिधम्ममवि कुज्जा सो बारसहा नेओ, थुलगपाणिवह अलियदिनाण / विवई परजुवईहाणं, विवज्जणं इच्छपरिमाणं दिसिमाणं भोगवयं, अणत्थदंडस्स विरइ सामइयं / देसावगासियवयं, पोसहमतिहीण य विभागो इय बारसहा सम्मं, सुविसुद्धं जो करेइ गिहिधम्म। सो निरूवमसुररिद्धि, लहेइ सुरदत्त सड्ढुव्व धम्मस्स फलं विरई, निरोहओ आसवाण सा य धुवं / रुद्धेसु तेसु जम्हा, अहिनवबंधो न कम्मस्स . जह सरवर समंता, निरुद्धदारं न संगिलइ सलिलं। तह जीवो वि हु कम्मं, निरुद्धपावासवप्पसरो तत्तो विसुद्ध परिणाम मेरुमंथाणमहियभवजलही। उवलद्धनाणरयणो, जंबु व्व सया सुही हवइ इय अट्ठदुवारेहिं, समयसमुद्दाउ अमयकलसु व्व। भवदुहसंतावहरो, उद्धरिओ एस धम्मविही मज्झत्थाणं आगम-रुईण संवेगभावियमईण। उवयारकए एसो न उणो सकसायचित्ताणं // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // // 47 // / 286