________________ // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // पू.आ.श्रीप्रभसूरिविरचितः ॥धर्मविधिः // नमिऊण वद्धमाणं तियसिंदनरिंदविहियबहुमाणं / वुच्छं सपरहियत्थं, धम्मविहिमहं समासेण कप्पियसमत्थवत्थुप्पयाणदुल्ललियकप्पतरुकप्पो / सत्ताण सया धम्मो, तस्स विही भन्नए एसो इह धम्मस्स परिक्खा लाभो गुण दोस दायगा जुग्गा। कइभेया फलसिद्धी इय अट्ठ भणामि दाराई जह कणगम्मि परिक्खा, कस-छेयण-तावताडणेहिं सया। सुयसीलतवदयाहिं, तहेव धम्मम्मि कायव्वा पुव्वावराविरुद्धं, सुत्तं सीलं च गुत्तिसंजुत्तं / जत्थ निरीहं च तवो, दया विसुद्धा य सो धम्मो जह केसिगुरुसमीवे, पएसिस्ना परिक्खिओ धम्मो / जाओ कल्लाणकरो, धम्मत्थींणं तहन्नेसि धम्मस्स होइ लाभो, अणाइणो मोहंणीयकम्मस्स / खयउवसमभावेणं, सो विय संजायए एवं मिच्छत्तमोह एगूण-हत्तर कोडिकोडिमयराणं / नियमा खवेइ जीवो, अहापवत्तेण करणेण एवं गिरिसरिदेवल-क्कमेण काऊण गंठिभेयं तु / कोंडाकोडीअंतो, जा पत्तो गंठिदेसम्मि ततो अपुव्वविरिवस्सुल्लासवसादपुव्वकरणेणं / मंठि भिंदइ जीवो जो भव्वो जेण भणियमिमं का गंठी ता पढम, गंठि समइच्छओ भवे बीयं / भनियष्टीकरणं पुण, सम्मत्तपुरक्खडे जीवे 283 // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 //